अपने जीवन को सफल बनाने या आनन्द प्राप्त करने के लिए आप जो भी कुछ करते हैं, उसी को केन्द्र मत बनाइये, अगर केन्द्र बनाना है तो ईश्वर प्राप्ति को केन्द्र बनाइये अर्थात् खुद को योगी बनाइयेः स्वामी चैतन्यानन्द
अपने जीवन को सफल बनाने के लिए या आनन्द प्राप्त करने के लिए आप जो भी कुछ करते हैं, उसी को केन्द्र मत बनाइये, अगर केन्द्र बनाना है तो ईश्वर प्राप्ति को केन्द्र बनाइये। पूर्ण आत्मसमर्पण सबसे सुन्दर उपहार हैं, ईश्वर को देने के लिए, ऐसे में भक्ति के आंसू में भिंगोये फूल ईश्वर खुशीपूर्वक स्वीकार करते हैं। श्रीकृष्ण ने कहा है कि सिर्फ योगाभ्यास और वैराग्य के द्वारा ही चंचल मन को काबू में किया जा सकता है। योग में प्रयास और भक्ति के साथ आत्मसमर्पण भी होना जरुरी हैं। उक्त बातें आज चार दिवसीय साधना संगम के समापन अवसर पर योगदा भक्तों को संबोधित करते हुए स्वामी चैतन्यानन्द ने रांची स्थित योगदा सत्संग आश्रम में कहीं।
उन्होंने कहा कि योगाभ्यास से प्रेम और भक्ति के द्वारा केवल ईश्वर को प्राप्त करने का लक्ष्य बनाना चाहिए। वो प्रेम ही था, जिसके कारण भगवान कृष्ण, अर्जुन के सारथि बन गये। इसे समझने की जरुरत हैं। ईश्वर आपके लिए कुछ भी करने और बनने को तैयार बैठे हैं। बशर्तें की आपका प्रेम उनके प्रिय शिष्य अर्जुन के जैसा हो। अर्जुन का प्रेम कैसा था, उसका दृष्टांत उन्होंने बड़े ही सुंदर ढंग से दिया जो अविस्मरणीय था।
उन्होंने कहा कि जब हम अपने जीवन में प्रभु को स्थापित कर लेते हैं, तो जीवन कुरुक्षेत्र नहीं बनता, बल्कि रासलीला भूमि बन जाती हैं। इसलिए हमें योगाभ्यास, प्रेम और भक्ति के साथ निरन्तर करते रहना चाहिए और कोशिश करना चाहिए कि हमारा जीवन भी एक योगी के जैसा हो। स्वामी चैतन्यानन्द ने कहा कि योग व्यक्तिगत जीवन को परमात्मा तक ले जाने का विज्ञान है। हम कर्म, ज्ञान और भक्ति के द्वारा इसे प्राप्त कर सकते हैं।
लेकिन राजयोग इन सभी योगों को सार है। साथ ही यह ईश्वर के पास ले जाने का सरल व सुगम मार्ग है। योगी इसी के द्वारा उस सर्वोच्च शक्ति तक पहुंच जाते हैं। उन्होंने कहा कि हम जो यहां आकर क्रियायोग में दीक्षित होते हैं। वो क्रिया योग दरअसल राज योग ही है। उन्होंने कहा कि सत्कर्म करते हुए, गुरु के द्वारा बताये मार्ग पर चलना ही राजयोग है।
उन्होंने कहा कि दुनिया का हर व्यक्ति हर विधा में सफल होना चाहता है और ये सब सफलता, सिर्फ और सिर्फ आनन्द प्राप्ति के लिए वो करता है। वो चाहता है कि वो हर अवगुणों से उपर उठे तथा दुखों पर विजय प्राप्त करते हुए, आनन्द को हासिल करें। उन्होंने कहा कि महाभारत युद्ध जब हुआ, तब हुआ। लेकिन आज उसे प्रतीकात्मक रुप से लें तो पता चलेगा कि हर व्यक्ति के जीवन में एक कुरुक्षेत्र है। जिसमें हर व्यक्ति अपना युद्ध खुद लड़ रहा है।
उन्होंने कहा कि कौरव नकारात्मकता और पांडव सकारात्मकता का प्रतीक है। कौरव हमें ईश्वर से दूर ले जाने में अहम् भूमिका निभाता है तो पांडव हमें ईश्वर के नजदीक ले जाने का मार्ग प्रशस्त करते हैं। उन्होंने कहा कि युद्धिष्ठिर धर्म, भीम प्राणशक्ति व अर्जुन आत्मसंयम के प्रतीक है। जबकि भीष्म अहंकार के प्रतीक है। यहां इन सब में अर्जुन शिष्य और श्रीकृष्ण गुरु के प्रतीक है। हमें हमेशा याद रखना है कि हमें अपने जीवन के युद्ध में हर हाल मे सफल होना है। हमें अपने जीवन में अपने अंदर की बुराइयों पर विजय हासिल करनी है। लेकिन उसके लिए हमें योगी बनना होगा।
उन्होंने कहा कि भगवान कृष्ण ने भी अर्जुन से यही कहा था कि अगर उसे कुरुक्षेत्र में सफल होना है तो उसे योगी बनना पड़ेगा। इसके लिए वर्तमान में क्रिया योग सर्वोच्च परमानन्द में हमें एकाकार करने का सर्वोच्च मार्ग है। उन्होंने कहा कि ईर्ष्या रुपी दुर्योधन हर के शरीर में व्याप्त है। आखिर ये दुर्योधन करता क्या है? उसे समझिये। हर के पास सुख के सारे संसाधन मौजूद हैं। फिर भी हर व्यक्ति दूसरे को प्राप्त सुख के संसाधनों से जलता हैं। वो चाहता है कि जैसे दूसरे को जो चीजें प्राप्त हैं, उसे भी वो चीजें प्राप्त हो जाये, जबकि उसके पास दूसरे के पास पड़ी हुई चीजों से भी ज्यादा महत्वपूर्ण चीजें उसके पास मौजूद होती हैं और यही ईर्ष्या उसके जीवन में कलह का कारण बन जाती हैं, लेकिन वो समझ नहीं पाता और दुख को आमंत्रण दे डालता है। अर्थात् अपने खुशियां को मापदंड दूसरे को प्राप्त भौतिक चीजों के मापदंड में लगाने लगता है।
उन्होंने कहा कि ठीक इसके विपरीत जो भक्त परमानन्द में डूबकर कर्म करता रहता है, वो ही सर्वश्रेष्ठ योगी बन पाता है। उन्होंने कहा कि क्रिया योग महान योगियों के साथ-साथ सांसारिक लोगों के लिए लाभदायक है। योग आलस्य नहीं सीखाता, योग सारे कर्तव्यों को पूरा करते हुए ईश्वर की खोज करना सीखाता है। उन्होंने कहा कि आध्यात्मिक ज्ञान या ईश्वरीय खोज जड़ पहाड़ से प्राप्त करने की अपेक्षा एक आत्मसाक्षात्कार प्राप्त व्यक्ति से प्राप्त करना ज्यादा श्रेयस्कर है। जब हम ईश्वर की खोज के लिए लालायित होते हैं तो ईश्वर खुद हमारी बेहतरी के लिए एक ईश्वर प्राप्त सद्गुरु हमारे पास भेज देता है। इसलिए आप सभी क्रियायोग के द्वारा ईश्वर को प्राप्त करने में ज्यादा समय लगाये, ताकि आपका जीवन भी योगियों की तरह आनन्दमय हो।