धर्म

भय की एक लंबी सूची जब हमें परेशान करती है तो यह जीवन तक को खा जाती है, भय से दूर रहने का एक ही उपाय है – भगवान पर भरोसा, क्योंकि इसी से निर्भयता आती हैः स्वामी गोकुलानन्द

भगवान पर भरोसा करने से ही निर्भयता आती है। ऐसे जीवन में भय की कोई कमी नहीं है। भय की एक लंबी सूची है। यह जब परेशान करती है तो यह जीवन तक को खा जाती है। आपने कई के मुख से यह जरुर सुना होगा कि उसे चिन्ता खाये जा रही है। ये चिन्ता क्या हैं, भय का ही तो एक रूप है। ये बातें आज योगदा सत्संग आश्रम में रविवारीय सत्संग को संबोधित करते हुए योगदा भक्तों के बीच स्वामी गोकुलानन्द ने कही।

उन्होंने कहा कि भय सर्वाधिक अगर किसी अंग को प्रभावित करता है, तो वह हृदय है। किसी भी साधक के लिए निर्भय होना बहुत ही जरुरी है, क्योंकि बिना निर्भयता के साधना हो ही नहीं सकती, क्योंकि भय आत्मा के प्रभुत्व तक को नष्ट कर डालता है। उन्होंने कहा कि भय हमारे मस्तिष्क और भय के अनुभवों को आत्मा के साथ बांध देता है, इसलिये हमें हर हाल में भय से मुक्त  होना आवश्यक है। यह हमें दिव्य चेतना में लिप्त होने में रुकावट डालता है। स्वामी गोकुलानन्द ने भय के बारे में श्रीमद्भगवद्गीता में दिये गये अध्याय दो के श्लोक संख्या 40 को अपने सत्संग में बार-बार उद्धृत करते हुए कहा कि गीता कहती है कि

नेहाभिक्रमनाशोSस्ति प्रत्यवायो न विद्यते।

स्वल्पमप्यस्य धर्मस्य त्रायते महतो भयात्।।

इस कर्मयोग में आरम्भ का अर्थात् बीज का नाश नहीं है और उलटा फलरूप दोष भी नहीं है, बल्कि इस कर्मयोगरूप धर्म का थोड़ा सा भी साधन जन्ममृत्युरूप महान भय से रक्षा कर लेता है। उन्होंने कहा कि भय को भगाने के लिए सर्वप्रथम आपको स्वयं में दृढ़ता लानी होगी। इसे हर हाल में अपने मन से खत्म करना होगा, क्योंकि भय मन का जहर है। हालांकि कभी-कभी भय आसन्न संकटों से हमारी रक्षा का काम करता है। जैसे एक हिरण के सामने शेर आ जाये तो वो आसन्न संकट को देख उसके भय से भागना चाहेगा, जो उसके जीवन की रक्षा के लिए आवश्यक भी है और उसमें वो सफल भी होता है। लेकिन यही भय जब हमारे मन में बैठ जाता है और अगर ये अवचेतन मन में जगह बना लें तो जीवन को पूरी तरह नष्ट भी कर डालता है।

उन्होंने कहा कि दरअसल भय चुम्बक की तरह है। अगर इसे मन में पाल लिया जाय, तो ये बार-बार हमारे जीवन में आयेगा और अगर इसे हमने मन में जगह नहीं दिया तो कभी भी हमारे जीवन में दुबारा आने की साहस नहीं करेगा। मतलब साफ है कि इस भय से आप डरेंगे तो ये बार-बार डरायेगा और नहीं डरेंगे तो फिर कभी आपके पास नहीं फटकेगा।

उन्होंने कहा कि कष्ट सभी को होता है। कुछ लोग कष्ट का सामना करते हैं। जो कष्ट का सामना करते हैं। कष्ट उनका कुछ भी नहीं बिगाड़ पाता और जो कष्टों के सामने रोना लेकर बैठ जाते हैं, उन्हें वहीं कष्ट उनके जीवन को नष्ट करने में प्रमुख भुमिका निभाने लगता है। इसलिए कहा जाता है कि जो डरते हैं, वे जीवन में कुछ नहीं कर पाते। जिस संस्थान में भय समाता है। वो संस्थान भी नष्ट हो जाता है।

स्वामी गोकुलानन्द ने कहा कि याद रखें कि भय आत्मा के गुणों पर कवर डाल देता है। भय जैसे ही मन में घर बनाने की कोशिश करें, उसे मन रूपी घर से निकाल फेंकने का काम करें। भय आयें या सताएं तो ऐसे समय में कोई अच्छी किताबें पढ़ने की कोशिश करें या कोई अच्छी मुवी देखने की कोशिश करिये या कोई कॉमेडी शो ही देख लिया कीजिये, ताकि आपका आये हुए भय से डाइवर्ट हो। लेकिन इससे भी अच्छा है कि आप ध्यान करें। ऐसे भी जो बराबर ध्यान करते हैं। उन्हें भय कभी सता ही नहीं सकता। न ही ऐसे लोग भय से भय खाते हैं। क्योंकि वे जानते है कि उनके साथ ईश्वर है, जो किसी भी संकट से उन्हें मुक्ति दिला सकते हैं।

उन्होंने कहा कि भय से मुक्ति के लिए अपने गुरु परमहंस योगानन्द जी ने अपने लेशन सात में कई तकनीकें सिखाई हैं। उन तकनीकों के माध्यम से भी हम भय से मुक्ति पा सकते हैं। उन्होंने इस बात को स्वीकार किया कि आधुनिक जीवन में असुरक्षा की भावना बहुत तेजी से बढ़ती जा रही हैं, जो भय को जन्म देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही है।

लेकिन याद करिये, जब हम पैदा हुए तो ईश्वर ने हमारे लिए कितनी सुंदर व्यवस्था कर रखी थी। अब जरा सोचिये जो ईश्वर हमारे आने के पूर्व इतनी अच्छी व्यवस्था कर सकता है, वो क्या इस वक्त हमारी मदद नहीं कर सकता। दरअसल हम जैसे-जैसे बड़े होते चले जाते हैं। हमें अपने आप पर, अपनी इच्छा शक्ति तथा स्वयं पर कुछ ज्यादा ही भरोसा हो जाता है। अगर हम यही भरोसा ईश्वर पर करें तो उसके परिणाम भी बेहतर आयेंगे और हम भयमुक्त होते चले जायेंगे।

उन्होंने कहा कि हम जो भी चाहते हैं, वहीं प्राप्त हो, यही भाव हमें ईश्वर से दूर कर देती है। ईश्वर वहीं चीजें हमें देते हैं, जो हमारे लिए जरुरी है। लेकिन हमारी इच्छाओं की सूची जिसमें बेकार चीजों का ही ज्यादा बोलबाला होता है, उसे मांगने में ज्यादा रुचि दिखाने लगते हैं, जो भय को जन्म देता है। उन्होंने कहा कि याद रखें, निर्भयता ही हमें इस जीवन और इसके बाद आनेवाले जीवन में बेहतरी का मार्ग प्रशस्त करती है। इसलिए भय से विजय पाने का मूल मार्ग है। गुरुजी के द्वारा बताये गये मार्ग पर चलते हुए ध्यान को कभी नहीं छोड़ना और क्रियायोग के मार्ग पर सदैव चलते जाना।