धर्म

जब अंगुलिमाल को निर्वाण प्राप्त हो सकती है तो आप को क्यों नहीं, आप में तो अंगूलिमाल जैसी क्रूरता भी नहीं – ब्रह्मचारी निर्मलानन्द

रांची स्थित योगदा सत्संग मठ में आयोजित रविवारीय सत्संग को संबोधित करते हुए वरिष्ठ ब्रह्मचारी निर्मलानन्द ने कहा कि जब अंगुलिमाल जैसा डाकू निर्वाण को प्राप्त कर सकता है तो आप क्यों नहीं निर्वाण प्राप्त कर सकते? वो भी तब जबकि आपमें तो अंगुलिमाल जैसी क्रूरता भी नहीं। उन्होंने कहा कि गौतम बुद्ध जैसे गुरु अंगुलिमाल के जीवन में आये, तभी अंगुलिमाल को निर्वाण प्राप्त हुआ, मतलब साफ है कि जीवन में गुरु का क्या महत्व है, यह दृष्टांत बताने के लिए काफी है।

निर्मलानन्द ने कहा कि योगदा में गुरु शिष्य परम्परा की एक शृंखला रही है। जैसे प्रेमावतार अपने गुरुजी परमहंस योगानन्द जी के गुरु युक्तेश्वर गिरि थे। युक्तेश्वर गिरि जी के गुरु लाहिड़ी महाशय थे और लाहिड़ी महाशय के गुरु महावतार बाबाजी थे। ऐसे भी आज का विषय भी गुरु शिष्य संबंध और उसकी महत्ता पर केन्द्रित था। निर्मलानन्द ने कहा कि हमेशा याद रखिये गुरु के द्वारा ही ईश्वर प्राप्त हो सकता है, बिना गुरु के ईश्वर को प्राप्त करना असंभव है।

उन्होंने कहा कि इस जीवन का प्रमुख उद्देश्य क्या है? या क्या होना चाहिए? तब उसका एक ही उत्तर है – सिर्फ और सिर्फ ईश्वर प्राप्ति और वह ईश्वर बिना गुरु के संभव ही नहीं। उन्होंने कहा कि जैसे ही आत्मा की ललक ईश्वर प्राप्ति की ओर होने लगती हैं, ठीक उसी समय एक ईश्वर एक सद्गुरु आपके पास भेज देता है और आप उस सद्गुरु का अनुभव भी करने लगते हैं।

निर्मलानन्द ने कहा हर साधक को निष्ठापूर्वक भक्ति की आदत डालनी चाहिए, साथ ही उसे अपने गुरु के प्रति अटूट श्रद्धा भी रखनी चाहिए। जब आप अपने सद्गुरु के प्रति अटूट श्रद्धा रखते हैं, तभी आपको युक्तेश्वर गिरि जैसा आशीर्वाद भी प्राप्त होता है। याद करिये परमहंस योगानन्द जी को युक्तेश्वर गिरि जी ने क्या कहा था? उन्होंने कहा था कि अभी से लेकर अनन्तकाल तक मैं तुम्हारा गुरु रहुंगा। जब तुम गलत कर रहे हो तब भी। ऐसे होते हैं गुरु। गुरु कभी अपने शिष्य से किसी भी वस्तु या सम्मान की अपेक्षा नहीं रखते, पर शिष्य को चाहिए कि अपने गुरु के प्रति सच्ची निष्ठा बरकरार रखे।

निर्मलानन्द ने कहा कि प्रत्येक शिष्य को चाहिए कि अपने गुरु के प्रति बेहतर संबंध बनाये रखने के लिये अपनी ओर से प्रयास जारी रखें। अपने गुरु परमहंस योगानन्द जी तो प्रेमावतार है। वे हम सभी से प्रेम करते हैं। उन्हें ध्यान, उनके बताये पाठों, उनके प्रति भक्ति तथा योगदा के बताये आदर्शों-मूल्यों के द्वारा उनका आशीर्वाद व मार्गदर्शन हम प्राप्त कर सकते हैं।

निर्मलानन्द ने कहा कि हर क्रियावान को दिन में दो बार क्रिया अवश्य करनी चाहिए। मन तो चंचल रहेगा, पर मन की चंचलता को कभी भी अपने उपर हावी नहीं होने दें। हमेशा अपने गुरु की सेवा में लगे रहे। गुरु पर विश्वास करना सीखें। वे कभी आपको ईश्वर से संपर्क कराने में देरी होने देना नहीं चाहते। हमेशा गुरु से वार्तालाप और गुरु को भजन द्वारा याद करते रहे। यह ईश्वरीय प्राप्ति के लिए अत्यंत आवश्यक है।