अपनी बात

जो BJP विभिन्न चुनावों में उम्मीदवारी तय करने से पहले ही गोपनीय सर्वे कराकर अंतिम निर्णय ले चुकी होती है, वहां ‘गुलामों से भी बदतर’ अपने कार्यकर्ताओं को मूर्ख बनाने की नीयत से ‘रायशुमारी’ की नौटंकी क्यों?

सच ही कहा गया है -“विनाशकाले विपरीत बुद्धि:”। अपने नाम के ठीक विपरीत झारखंड प्रदेश भाजपा-संगठन मंत्री ‘कर्मवीर’ और इनके ‘जमूरों’ की उटपटांग करतूतों ने झारखंड में भाजपा को 2004 का स्वाद चखाने के लिए आगे बढ़ा दी है। जब लोकसभा चुनाव में पार्टी का लगभग सफाया ही हो गया था। कोडरमा सीट को छोड़ बाकी 13 सीटों पर भाजपा की शर्मनाक हार हुई थी और केंद्र की सत्ता से अटलजी जैसे करिश्माई व्यक्तित्व के होते हुए भी यह पार्टी बुरी तरह फिसल गई थी। अब खुद सोचिए कि जब अटल बिहारी वाजपेयी के होते, वैसा हुआ था तो बाकियों की आज क्या हैसियत है?

अब चलिये, काम की बात पर आते हैं। भाजपा ऐसी पार्टी है कि वो लोकसभा या विधानसभा चुनावों में उम्मीदवारी तय करने से पहले ही गोपनीय सर्वे कराकर अंतिम निर्णय कर चुकी होती है। लेकिन ‘गुलामों से भी बदतर’ अपने कार्यकर्ताओं को बहलाने-फुसलाने की नीयत से ‘हाथी के दांत, खाने के और, दिखलाने को और’ लोकोक्ति को चरितार्थ करते हुए ‘रायशुमारी’ की मनोरंजक नौटंकी भी करती है।

इस नौटंकी को अंजाम देने के लिए अपेक्षित कार्यकर्ता श्रेणी तय की जाती है जो कि पार्टी की वफादारी से ज्यादा अपने-अपने ‘टिकटार्थी आकाओं’ के इशारों पर नाचने वाले ही होते हैं। ये आका ही उन्हें खिला-पिला, जेब गरम कर और अपनी गाड़ी में बिठाकर रायशुमारी के लिए रवाना कर देते हैं। जहां रायशुमारी का नाटक खेला जाता है, वहां पर भी इन टिकटार्थियो के ‘जासूस’ तैनात होते हैं कि किसने किसके लिए अपनी राय प्रकट की है।

इन हालातों में कल्पना करिए कि यदि ऐसे जासूस (या एजेंट) के सामने ही किसी कार्यकर्ता को अपने चहेते उम्मीदवार के लिए राय प्रकट करनी हो, तो उसकी क्या हालत हो सकती है? लेकिन कल गिरिडीह लोकसभा के लिए कराई गई रायशुमारी में वह सब हुआ जिससे कार्यकर्ताओं को भारी मानसिक दबाव और परेशानी का सामना करना पड़ा। (हालांकि लोग बताते है कि यह केवल गिरिडीह का ही हाल नहीं हैं, यही तमाशा झारखण्ड की सभी 14 लोकसभा सीटों का हैं।)

बात ऐसी है कि किसी लोकसभा या विधानसभा क्षेत्र में उम्मीदवारी के लिए रायशुमारी के लिए नियुक्त पदाधिकारी उस क्षेत्र और उस जिले की भौगोलिक सीमा के बाहर से होते है, जिस जिले में वह लोकसभा या विधानसभा पड़ती है। लेकिन गिरिडीह लोकसभा के बोकारो जिले में पड़नेवाले बेरमो और गोमिया विधानसभाओ की रायशुमारी के ड्रामे के लिए संगठन मंत्री कर्मवीर सिंह की अनुकंपा से जो दो जमूरे पर्यवेक्षक की भूमिका में आए थे, उनमें प्रदेश भाजपा महामंत्री सांसद आदित्य साहू के साथ बोकारो जिले के ही रोहितलाल सिंह थे जिनके सामने ही उसी जिले के कार्यकर्ताओं का राय प्रकट करना ‘गोपनीयता’ भंग होने की दृष्टि से खतरे से खाली नहीं था।

परिणाम यह हुआ कि रायशुमारी के दौरान उम्मीदवारों के संबंध में वे बेचारे कार्यकर्ता खुलकर अपनी बात कहने से बचते रहे और ऐसे ही माहौल में सारा ड्रामा निबटाया गया। हमारे एक पत्रकार मित्र ने बतलाया कि रायशुमारी-कक्ष से बाहर निकलकर कार्यकर्ता पार्टी द्वारा उन्हें इस तरह ‘सांप छुछुंदर’ की स्थिति में डालने पर खूब भड़ास निकाल रहे थे। कई लोग तो संगठन मंत्री कर्मवीर की ऐसी गैर-जिम्मेदाराना कार्यशैली के मद्दे नज़र खुलकर कह रहे थे कि ये महोदय झारखंड में भाजपा के ‘कर्म’ को कूटकर ही मानेंगे। इस नौटंकी के घंटे भर बाद कई कार्यकर्ताओं का आक्रोश था कि उन्होंने जो बात रायशुमारी के क्रम में दबी जुबान से रखी,वह आदित्य साहू जी के साथ बैठे उक्त ‘जासूस’ के द्वारा बाहर फैला दी गई जिससे कई दबंग टिकटार्थियों से उनके संबंध खराब हो जाने का खतरा पैदा हो गया है।

दरअसल प्रदेश भाजपा संगठन-मंत्री कर्मवीर सिंह ने जिस तरह तपे-तपाए समर्पित कार्यकर्ताओं को दरकिनार कर प्रदेश अध्यक्ष बाबूलाल मरांडी से ‘आधा तुम, आधे हम’ के तर्ज पर पार्टी की नई कमेटी में पदों को बंटाधार किया। उससे पहले से ही दल के अंदर पूरे प्रदेश में भारी असंतोष व्याप्त है। ‘आधा तुम’ मतलब बाबूलाल मरांडी के साथ जेवीएम से भाजपा में शामिल वे लोग, जिन्होंने एक समय भाजपा के झंडे फाड़े थे, जिन्होंने पार्टी की ऐसी की तैसी कर डाली थी और ‘आधे हम’ मतलब वैसे लोग जो ‘कर्मवीर की परिक्रमा’ को ही भाजपा में सबकुछ मानते हैं।

कर्मवीर की नफासत और कारपोरेट कार्य-शैली एवं उनके चहेते जमूरों की हरकतों से असंतोष आक्रोश में बदलता जा रहा है और रायशुमारी की नौटंकी में कर्मवीर की उक्त शरारत के चलते पापों का घड़ा अब पार्टी के माथे फूटने के कगार पर है, जिससे झारखंड में पार्टी का बेड़ा गर्क होना तय है। रांची के कई आक्रोशित कार्यकर्ताओं से जब पूछा गया कि कर्मवीर सिंह और प्रदीप वर्मा जैसे लोगों की पार्टी को क्षति पहुंचाने वाले और छवि को कलंकित करने वालों के विषय में क्षेत्रीय संगठन मंत्री नागेंद्रनाथ त्रिपाठी और प्रदेश प्रभारी लक्ष्मीकांत वाजपेयी से बात क्यों नहीं करते, तो उनका कहना था कि ये लोग द्रौपदी के चीरहरण चुपचाप सहते रहनेवाले धृतराष्ट्र की भांति ही अंधे बने हुए हैं। ऐसे में इन दोनों के सामने क्या अपना दीदा रोना।