जब सरकार आपके साथ हैं, तो फिर क्या? सरकारी जमीन लूटिये और कब्जा जमाइये
उन तमाम लोगों को बधाई, जो सरकारी जमीनों का अतिक्रमण कर, अपना आशियाना बनाते हैं, खटाल बनाते हैं, अपने गांवों और पुश्तैनी जमीनों को छोड़ शहरों में अवैध रुप से बसते हैं, और खुद को गरीब बताते हुए सरकारी जमीन पर आराम से कब्जा जमाते हैं। बधाई उन्हें भी जो उपरवाले के नाम पर बच्चे पैदा करते हैं, और उन बच्चों को पढ़ाना-लिखाना छोड़, वह सारे काम कराते हैं, जो उनके दिल में होता हैं और सरकारी प्रतिष्ठानों की जमीन पर कब्जा जमा लेते हैं।
बधाई इसलिए कि रघुवर सरकार ने ऐसे लोगों के लिए दो बहुत अच्छे काम किये हैं, एक तो अवैध रुप से बसे इस्लामनगर को बसाने के लिए फ्लैट बनवाना शुरु किया और दूसरा रघुवर सरकार ने फैसला लिया है कि शहरी क्षेत्रों में एक जनवरी 1985 से पहले सरकारी जमीन पर कब्जा करनेवालों को मकान बनाने के लिए सरकार अधिकतम 10 डिसमिल जमीन देगी। जमीन 30 साल की लीज पर मिलेगी। शहरी क्षेत्रों में अतिक्रमण करनेवालों की बंदोबस्त की जानेवाली जमीन का लगान और सलामी का फार्मूला भी निर्धारित किया गया हैं, इसके तहत अगर जमीन का बाजार मूल्य प्रति डिसमिल एक लाख रुपये हो, तो 30 वर्षों के लिए लगान और सलामी की रकम 25 हजार रुपये होगी।
इसलिए आप सभी लोगों से अनुरोध है कि ईमानदारी छोड़िये, मेहनत छोड़िये, अपने ईमान के पैसों से घर व जमीन खरीदने की मन बना रहे हैं, तो उसे त्यागिये, मौका हैं, जहां भी सरकारी जमीन देखिये, लूट लीजिये, वहां बस्ती बसा दीजिये और फिर 30-40 सालों के बाद कोई न कोई सरकार रघुवर दास जैसी जरुर आयेगी, जो आप पर दया दिखाके, आपके द्वारा लूटी गई जमीन को आपको सौंप देगी, वह भी कैबिनेट से पास कराकर।
वे लोग मूर्ख हैं, जो अपनी मेहनत से, ईमानदारी से पैसे इकट्ठे कर मकान बनाते है, धन्य हैं वे आईएएस-आईपीएस जो गरीबों के लिए बनी विभिन्न योजनाओं को लूटकर अपने लिए विभिन्न महानगरों में आशियाने बनाते हैं, और धन्य हैं ऐसे लोग जो गरीब और गरीबी के नाम पर सरकारी जमीन को लूटकर हथिया लेते हैं, ऐसे दोनों महान समुदायों का भारत में नमन हैं, क्या सोच हैं इनकी? ऐसे सोच से ही तो भारत बनेगा, झारखण्ड बनेगा? हमें चाहिए कि ऐसी सोच को बढ़ावा दें, क्योंकि जब सरकार ऐसे लोगों को दस-दस डिसमिल जमीन देने को, वह भी कौड़ियों के भाव तैयार हैं, तो इसका फायदा सामान्य लोग क्यों न उठाये। वाह रे रघुवर, वाह रे तेरी सोच।