धर्म

जब हम सही रूप से खुद को सक्रिय करते हुए, सही लक्ष्य की ओर, सही समय पर कदम बढ़ाते हैं तो जीवन में सफलता मिलती ही है, जीवन को एक लक्ष्य प्राप्त होता ही हैः स्वामी स्मरणानन्द

रांची स्थित योगदा सत्संग आश्रम के श्रवणालय में रविवारीय सत्संग को संबोधित करते हुए वरिष्ठ संन्यासी स्वामी स्मरणानन्द गिरि ने योगदा भक्तों को कहा कि हमारे प्राचीन ऋषियों ने कई बार हमारे जीवन में आनेवाले विभिन्न आश्रमों के बारे में नाना प्रकार से अपने संस्मरणों में वर्णन किया है। उनके संस्मरणों में जायें तो पता चलता है कि अगर हम सही रूप से खुद को सक्रिय करते हुए, सही लक्ष्य की ओर, सही समय पर कदम बढ़ाएं तो जीवन में सफलता मिलती ही है, जीवन को एक लक्ष्य प्राप्त होता ही है।

उन्होंने कहा कि यहां आश्रम में जो श्रम छुपा है, उसका मूल अर्थ किसी लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए उसके लिए किया गया सही प्रयास है। स्वामी स्मरणानन्द ने कहा कि आश्रम चार प्रकार के हैं। पहला ब्रह्मचर्य, जिसका जुड़ाव विद्यार्थी जीवन से हैं।  गृहस्थ मतलब पारिवारिक जीवन। वानप्रस्थ का मतलब आध्यात्मिकता की ओर कदम बढ़ाना और संन्यास का मतलब पूर्ण रूप से सांसारिक वस्तुओं के मोह का परित्याग कर स्वयं को आध्यात्म के लिए पूर्ण रूप से समर्पित कर देना है।

उन्होंने कहा कि भारतीय संतों के बीच, जीवन का उद्देश्य कभी भी नेम-फेम या धन प्राप्त करना नहीं रहा। उन्होंने कहा कि ये जो चार आश्रम उन्होंने गिनाएं, ये कोई कक्ष (कम्पार्टमेन्ट) नहीं हैं, कि एक को छोड़कर दूसरे में चले गये। यह तो एक प्रकार का पारगमन है। यह चारों अवस्था आपके जीवन जीने की कला से जुड़ा है। यहीं हमें समझना है। उन्होंने चारों आश्रमों को समझाने के लिए कई दृष्टांत दिये, जो अविस्मरणीय थे।

उन्होंने कहा कि ब्रह्मचर्य आश्रम में आप किसी गुरू के सान्निध्य में रहकर या समय बिताते हुए, अपने को आध्यात्मिक रूप से रखकर, आध्यात्मिक विचारों को अपनाकर, अपनी आदतों को बेहतर बनाकर, अपने कौशल को निखारकर आप स्वयं में बेहतर बदलाव ला सकते हैं, जो आनेवाले भविष्य के लिए आपके ये गुण जीवन में मील के पत्थर साबित होंगे।

उन्होंने कहा कि इसके बाद आप गृहस्थ आश्रम में प्रवेश करते हैं। ये आश्रम वैवाहिक जीवन, पारिवारिक जीवन तथा उसके साथ आपके सामाजिक जीवन को परिलक्षित करता है। इसमें आप अपने परिवार के सदस्यों तथा समाज के लिए स्वयं को कैसे अपनी बेहतर सेवा देकर, स्वयं को समर्पित करते हैं, यह समय इसी के लिए हैं। लेकिन इसमें भी आप तभी बेहतर स्वयं को ला सकते हैं, जब आपका जीवन आध्यात्मिकता से भरा हो या आप अपने आपको ईश्वरीय चेतना में लाकर, अपने कर्मों को बेहतर करने की ठानी हो।

स्वामी स्मरणानन्द गिरि ने बताया कि इसके बाद आता है – वानप्रस्थ। वानप्रस्थ में आपको गृहस्थ से ज्यादा अध्यात्म की ओर कदम बढ़ाना पड़ेगा। ध्यान की ओर ज्यादा समय देना होगा। ज्यादातर लोग जब अपने कामों से अवकाश प्राप्त कर लेते हैं। तो न चाहते हुए भी, उन्हें पारिवारिक और सामाजिक कार्यों में भाग लेना पड़ता है। उनकी इच्छा नहीं हैं, फिर भी वे नाना प्रकार के उत्सवों/कार्यक्रमों में भाग लेते हैं।

वे बताते हैं कि हालांकि ये काम गृहस्थ आश्रम में भी खूब होता था। उस वक्त आप कुछ इसमें ज्यादा व्यस्त होते थे। उस समय परिवार, समाज, रिटायरमेन्ट के बाद की प्लानिंग और अन्य कामों के लिए आपको ज्यादा खुद को लगाना पड़ता था। लेकिन वानप्रस्थ में ऐसा नहीं हैं। स्वामी स्मरणानन्द गिरि ने गृहस्थ की तुलना एक व्यस्ततम रेलवे स्टेशन और वानप्रस्थ की तुलना उस सुन्दर पार्क से की, जहां जाकर मन को शांति व सुकून मिलता है।

उन्होंने कहा कि वानप्रस्थ में कोई प्रतियोगिता नहीं होती और न ही किसी प्रकार की किसी से तुलना की संभावना रहती है। इसमें आप अपने जीवन को पुनःपरिभाषित करते हैं। जैसे आप जब गृहस्थ आश्रम में रहते हैं तो आपको व्यायाम या उपवास करने का मौका नहीं मिलता, लेकिन वानप्रस्थ में ये सारे चीजें और समय भी आपके लिए उपलब्ध है। वानप्रस्थ में आपके हृदय और मन-मस्तिष्क को स्वच्छ रखने के लिए मौके भी हैं। हमेशा याद रखिये कि हृदय की स्वच्छता, मन की पवित्रता और चेतना को स्वच्छ बनाने के लिए वानप्रस्थ से बढ़िया आश्रम कोई नहीं। ध्यान, भक्ति और सेवा से खुद को जोड़कर आप अपने लक्ष्य की ओर बेहतर स्थिति में जा सकते हैं।

उन्होंने कहा कि आप कभी बेहतर व बड़े पदाधिकारी हो सकते हैं। लेकिन ये भी न भूलें कि आप आज अवकाश प्राप्त हो चुके हैं। मतलब आज आप कुछ भी नहीं हैं। आपकी स्थिति उस फ्यूज हुए बल्ब की तरह है, जो बहुत ही ज्यादा वोल्ट का था, लेकिन चूंकि अब फ्यूज हो गया तो उसकी भी स्थिति उस कम वोल्ट के फ्यूज हुए बल्ब की तरह हैं, जो कभी प्रकाश दिया करता था, लेकिन आज प्रकाश देने की स्थिति में नहीं हैं।

स्वामी स्मरणानन्द ने कहा कि ये आश्रम हमारे प्राचीन ऋषियों के द्वारा बनाये गये। जो हमें जीवन जीने की कला सीखाते हैं कि कैसे इन आश्रमों के सहारे हम जीवन व्यतीत कर ईश्वरीय गोल की ओर बढ़ सकते हैं। अगर आप इन आश्रमों में रहकर, बेहतर जीवन जीना चाहते हैं, ईश्वरीय गोल की ओर बढ़ना चाहते हैं तो आपके लिए कुछ भी दुष्कर नहीं। इसलिए हमें भारतीय मनीषियों द्वारा बताये गये आश्रमों की महत्ता समझनी ही पड़ेगी।

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