अपनी बात

जब तुम अपनी ही सुनते हो, धनबल व जातिवाद के आधार पर कैंडिडेट का चुनाव करते हो तो फिर रायशुमारी क्यों कराते हो, अपने ही भाजपा कार्यकर्ताओं को बेवकूफ क्यों बनाते हो?

सीधा सा सवाल है, जब तुम अपनी ही सुनते हो। धनबल व जातिवाद के आधार पर कैंडिडेट का चुनाव करते हो तो फिर रायशुमारी क्यों कराते हो? अपने ही भाजपा कार्यकर्ताओं को बेवकूफ क्यों बनाते हो। धनबाद में तो जो भाजपा ने रायशुमारी करवाई वहां तो ढुलू महतो का नाम ही नहीं था। लेकिन वहां से ढुलू महतो को कैंडिडेट बना दिया गया, वहां स्थिति ऐसी हो गई कि ढुलू महतो के अपराधिक रिकार्ड को देखते हुए, जनता तो दूर भाजपा के धनबाद के ही बड़े-बड़े नेता व कार्यकर्ता ढुलू को स्वीकार नहीं कर पा रहे। छोटे कार्यकर्ता तो अपने ही दिग्गज भाजपा नेताओं से पूछ रहे हैं कि यह कैसे हो गया? जवाब किसी के पास नहीं है। सभी मुंह छुपाकर भाग रहे हैं?

अब जमशेदपुर का हाल देखिये। यहां भी रायशुमारी भाजपा ने करवाई। जमशेदपुर सीट से विधानसभा वाइज। यह रायशुमारी जनता के बीच करवाई गई। जिसमें भाजपा की ओर से तीन कैंडिडेट थे। वो कैंडिडेट थे – निवर्तमान सांसद विदुयत वरण महतो, भाजपा प्रदेश प्रवक्ता कुणाल षाड़ंगी, डा. दिनेशानन्द गोस्वामी और राज कुमार सिंह। विदुयत वरण महतो जमशेदपुर पूर्व और जमशेदपुर पश्चिम छोड़कर घाटशिला, पोटका, बहरागोड़ा और जुगसलाई विधानसभा सीटों पर बुरी तरह पिछड़ते दिखे।

मतलब साफ था कि लोकसभा चुनाव हुए तो विद्युत वरण महतो हार सकते हैं, इससे अच्छा रहेगा कि कुणाल षाड़ंगी को ही टिकट दे दिया जाय, पर जातिवादी सोच ने भाजपा को विदुयत वरण महतो को टिकट देने पर मजबूर कर दिया। जिसका परिणाम यह हुआ कि विदुयत वरण महतो की भी इस लोकसभा सीट पर हालत पतली है। अगर इंडिया गठबंधन ने मजबूत उम्मीदवार खड़े कर दिये तो विदुयत वरण महतो शायद ही लोकसभा इस बार पहुंच पाये। लोग बताते है कि विद्युत वरण महतो की सामाजिक व राजनीतिक निष्क्रियता ही इसके लिए ज्यादा जिम्मेवार है।

राजनीतिक पंडितों की मानें तो मोदी लहर और राम लहर की नैया पर सवार बौराई भाजपा को यह नहीं पता कि झारखण्ड में इन लहरों का कोई जोर नहीं अगर ये जोर रहता तो 2019 के विधानसभा चुनाव में इन्हीं इलाकों में भाषण दे रहे अमित शाह की सभा में लोगों के टोटे नहीं पड़ते और न ही रघुवर दास इन इलाकों में बुरी तरह हारते, लेकिन इन नेताओं को कौन समझाएं। राजनीतिक पंडितों का तो यह भी कहना है कि सारी चाणक्य बुद्धि झारखण्ड में ही फेल क्यों होती है, यह आज तक भाजपा के शीर्षस्थ नेताओं और प्रदेश के कर्मकूट नेताओं ने समझने की कोशिश ही नहीं की।

हाल इतना खराब है कि दूसरे दलों से प्रत्याशी मंगवाएं जा रहे हैं। उनके गले में भाजपा के कार्यकर्ताओं से माले डलवाएं जा रहे हैं। भाजपा कार्यकर्ता भी मजबूर असहाय होकर कहार बनकर इनकी डोली ढोते जा रहे हैं। लेकिन जनता असहाय और मजबूर नहीं, वो इस बार लगता है कि सबक सिखाने को बैठी है। अगर स्थिति ऐसी रही तो भाजपा के प्रदेशस्तरीय नेताओं के कर्मकूट नीति पर अवश्य ही मुहर लगायेगी और इनके कर्मकूट कर सदा के लिए इनकी राजनीति पर ताला लगा देगी।