प्रभात खबर तुम कहां हो, जिम्मेदारी तो तुम्हारी भी बनती है…
प्रभात खबर तुम कहां हो? क्या तुम्हारी जिम्मेदारी नहीं बनती? क्या तुम्हारे यहां काम करनेवाले तुम्हारे मालिक, संपादक, पत्रकार एवं कर्मचारी गाय का दूध नहीं पीते? क्या तुम्हारे घर में गाय के गोबर का उपयोग नहीं होता? क्या तुम्हारे घर में कोई भी संस्कार होते है, उसमें गाय के उपलों का उपयोग नहीं होता? क्या तुम्हारे यहां के लोग गाय के चमड़े से बने जूते, चप्पल या बैग या अन्य सामग्रियों का उपयोग नहीं करते? क्या तुम मनुष्य नहीं हो? अगर हो तो, बताओ तुमने उस घायल गाय के लिए क्या किया? बस यहीं कि घायल गाय की फोटो उतारी और अखबार के पृष्ठ संख्या 10 पर छाप दिया और सवाल गोरक्षकों से पूछ डाला – गोरक्षकों कहां हो?
जिम्मेदारी तो तुम्हारी भी बनती है अखबारवालों
यह जिम्मेदारी तो तुम्हारी भी बनती है, गाय का कर्ज तो तुम्हारे उपर भी है, गाय ने बचपन में तुम्हें भी खुब दुध पिलाया है, अरे गाय ने तो उन्हें भी बचपन में अपना दुध पिलाया, जो जवानी या होश संभालते ही, उसे खाने के लिए टूट पड़ते हैं, पर तुम उस कर्ज को क्या समझोगे? तुम तो गाय को भी भोज्यपदार्थों के अलावा कुछ समझा ही नहीं। तुम तो गाय के प्रति संवेदनशील रहनेवाले उन महामानवों को भी गाली दे दिया, जो कम से कम प्रति दिन गोग्रास के नाम पर दो रोटियां, गाय को खिलाया करते हैं। तुम अपनी अंतरात्मा से पूछो कि कभी तुमने गाय को कभी कुछ खिलाया, अगर नहीं, तो फिर तुम्हें इस प्रकार के सवाल उठाने का अधिकार किसने दिया?
गोरक्षकों को ललकारने की कोशिश
कहीं ऐसा तो नहीं कि पिछले कई दिनों से जो गाय के नाम पर देश में उबाल था, आजकल शांत दिख रहा है, तो तुम्हें बेचैनी हो गयी। तुम गोरक्षकों को ललकार रहे हो, यह कहकर कि गोरक्षकों कहां हो? भाई प्रभात खबर वाले ये तो पत्रकारिता नहीं है? पत्रकारिता के लिए और भी बहुत कुछ है, उस पर लिखो, गाय को उसके हाल पर छोड़ दो, वह तो ऐसे भी आजकल बलहीन व श्रीहीन है। वह तो उसी दिन मर गई थी, जब जवाहर लाल नेहरु जैसे महान लोगों ने प्रधानमंत्री का पद संभाला था। वह तो उसी दिन मर गई थी, जब भारत धर्मनिरपेक्ष घोषित हो गया था, क्योंकि धर्मनिरपेक्षता के नाम पर सर्वाधिक हमले तो गाय पर ही हुई। गाय जो कभी कृषि का केन्द्र-बिन्दु हुआ करता था, उसे सिर्फ भोज्यपदार्थ बना दिया गया, और जिसका कितना घातक परिणाम हो रहा है, वो तो भारत का किसान और कृषि कार्य से जुड़े लोग ही जानते है।
वे क्या जानेंगे गो का महत्व, जो इसे सिर्फ भोज्यपदार्थ मानते हो
भला प्रभात खबर जैसा अखबार क्या जानेगा? वे कांग्रेसी क्या जानेंगे, जिन्होंने केरल में गोमांस भक्षण उत्सव ही मना डाला। जिसने बीच सड़क पर गाय के बछड़े को काट दिया और स्वयं को मानव कहलाने का सम्मान भी खो दिया। कमाल है, घोड़े की टांग टूटती है तो वामपंथी सर उठा लेते है, बिल्ली और कुत्ते को कुछ हो जाये तो अदालत फैसले देने लगती है और गाय को कुछ हो जाये तो लीजिये, गोरक्षकों को पुकारा जाने लगता है। गाय की हालत तो मुर्गियों से भी बदतर हो गयी है, इस देश में। भागलपुर में एक प्रभात खबर भक्ति में लीन मुकुटधारी अग्रवाल जी रहते है, उन्होंने भी कल फेसबुक पर पोस्ट किये। पोस्ट था – पारिकर की बीफ को लेकर घोषणा और गो भक्तों की रहस्यमय चुप्पी, आखिर इसके पीछे कौन सी राजनीति चल रही है? इसका मतलब क्या है? इसे समझने की जरुरत है। हमारे देश में स्वयं को बुद्धिजीवी कहलानेवाले लोगों की संख्या बहुतायत है। उन्हें भी शांति पसंद नहीं है, चूंकि शांति होने पर उन्हें आलेख लिखने और अपना दिमाग लगाने का मौका नहीं मिलता, पर अशांति होते ही, वे सक्रिय हो जाते है, धर्मनिरपेक्ष कहलाने का मौका ढूंढ लेते है, वे इसीलिए इस प्रकार का पोस्ट या आलेख लिखते है, ताकि समाज व देश में शांति का माहौल नहीं रहे।
पुनः देश में अशांति फैलाने की कोशिश
दरअसल ये लोग पुनः सक्रिय हो गये है? माहौल बिगाड़ने के लिए, ये गोरक्षकों को ऐसा-ऐसा लिखकर ललकार रहे है। कहां हो? शुरु हो जाओ, टूट पड़ो। ये हैं गांधीवादी सोचवाले, ये है प्रभात खबर, खबर नहीं आंदोलन वाले। भाई अच्छा आंदोलन है, तुम्हारा। करते रहो, आंदोलन। भड़काते रहो आग। दुनिया देख रही है, तुमको। इसकी सजा गो के रोम-रोम तुम्हें देंगे, चिंता क्यों करते हो? कई को तो सजा ईश्वर दे भी रहा है, पर चूंकि वे इतने गिर चुके है, कि उन्हें पता ही नहीं चल पाता कि जो सजा उन्हें मिल रहा है, उसके कारण क्या है? बेशर्म बनते रहिये, इसी तरह गोहत्या पर अट्टहास करते रहिये। बेवजह के उलूलजुलूल लिखते रहिये, लोगों को भरमाते रहिये कि वेद में ये लिखा है? वेद में वो लिखा है? भले ही वेद में क्या लिखा है, वो आपको समझ में आये या नहीं आये।
अच्छा प्रयास
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की हम प्रशंसा करेंगे कि इधर उन्होंने गोरक्षा के नाम पर बने असामाजिक संगठनों पर कड़े कार्रवाई करने का आह्वान किया। उनके इस आह्वान का असर भी देखने को मिल रहा है, पिछले कई दिनों से कहीं से भी गोरक्षा के नाम पर अलोकप्रिय समाचार देखने व सुनने को नहीं मिले है पर इन दिनों एक प्रभात खबर जैसा नया तबका, उन गोरक्षकों को फिर ललकारने में लगा है, अगर फिर से कहीं कोई अप्रिय घटना घटती है, तो इसके लिए हम तो प्रभात खबर और वैसे बुद्धिजीवियों को ही इसके लिए जिम्मेवार मानेंगे, जो फिलहाल असामाजिक संगठनों को ललकार रहे है।
Hi,bilkul sahi jimnewaari sabki hai…
Surf khabar aur dhruvikaran me daude de base niklna hoga…
Baahut hi sati k bishleshan
Aabhaar,pranam