अपनी बात

जहां अपने बच्चों को झूठी सम्मान दिलाने के लिए माता-पिता व स्कूल प्रबंधक रुचि लेते हैं, वहां से प्रकाशित होनेवाला अखबार या उसका मालिक या संपादक भी भूखों नहीं मरता

जिस देश/राज्य में लालची लोग होते हैं, वहां ठग कभी भूखों नहीं मरता, ठीक उसी प्रकार जिस देश/राज्य में झूठी सम्मान पाने व अपने बच्चों को झूठी सम्मान दिलाने के लिए माता-पिता व अभिभावक अथवा विभिन्न स्कूलों के निदेशक, प्राचार्य अथवा शिक्षक रुचि दिखाते हैं, वहां से प्रकाशित होनेवाला अखबार या उसका मालिक व संपादक सह प्रबंधक भी भूखों नहीं मरता, उसका कारोबार निरन्तर चलता रहता हैं, उसके पेट ही नहीं बल्कि उसके सर्वांग तृप्त रहते हैं, क्योंकि उसके सभी हाथ-पैर ही नहीं बल्कि पूरा शरीर रसगुल्ले के हड़िये में डूबे रहते हैं।

वो हर दम बम-बम रहता है, खुश रहता है क्योंकि वो जानता है कि उसका ये कारोबार कभी खत्म नहीं होगा, अगर एक-दो लोग उसका विरोध भी करेंगे तो क्या होगा, अरे कनगोजर के एक दो टांग टूट भी गये तो कनगोजर को कुछ होता है क्या, वो तो फिर भी बची हुई जिंदगी उसी शान से गुजार देता है, जिसके लिए वो पैदा हुआ है।

रांची में पिछले कई वर्षों से रांची से प्रकाशित एक अखबार प्रभात खबर हमेशा की तरह इस वर्ष भी एक कार्यक्रम आयोजित किया। यह कार्यक्रम उसने इस बार 18 जून 2023 को रांची के गुरु नानक स्कूल ऑडिटोरियम, पीपी कंपाउंड में किया। इस कार्यक्रम के मीडिया स्पान्सर थे – एमिटी यूनिवर्सिटी, आईसीएफएआई यूनिवर्सिटी, उषा मार्टिन यूनिवर्सिटी, गोल, पतंजलि रेसिडेसिंयल कालेज फोर सिविल सर्विसेज, बायोमी तथा प्रभात खबर से जुड़ी अन्य एजेंसियां। कार्यक्रम का नाम था – प्रतिभा सम्मान 2023, इसका ध्येय वाक्य था – आपकी सफलता, हमारा अभिमान। अब बताइये कि एक विद्यार्थी की सफलता, एक अखबार के लिए अभिमान कैसे हो सकता है?

आप कहेंगे कि कभी नहीं हो सकता, लेकिन जो चालाक लोग होते हैं, अखबार चलाते हैं, उनके लिए ये अभिमान ही होता हैं, क्योंकि ये कमाने का अवसर होता है, क्योंकि जो मैट्रिक या सीबीएसई की दसवीं की परीक्षा पास करते हैं, उनके माता-पिता या विद्यालयों को भी एक चस्का लग गया होता है कि कोई अखबार का रिपोर्टर उनके यहां आयेगा और उनके बच्चों को सम्मान के नाम पर एक पीतल का छोटा सा तमगा उसके गर्दन में लटकवा देगा।

जबकि सच्चाई यह है कि इस तमगे का उस विद्यार्थी के जीवन में कोई मोल नहीं रहता। न तो यह तमगा उसके विश्वविद्यालय में नामांकन के समय कोई रोल अदा करता है और न ही कोई सरकारी या निजी सेवाओं में इस प्रकार के तमगे कोई प्रभाव ही डालते हैं, पर यही तमगे के प्राप्त करने के लालच रखनेवालों के कारण, उन अखबारों को, इसके प्रायोजकों द्वारा एक अच्छी रकम हासिल हो जाती हैं, जो इस प्रकार के कार्यक्रम आयोजित करते हैं, ऐसे भी उनके इस कार्यक्रम को आयोजित करने का मूल लक्ष्य यही होता है, नहीं तो जिन्होंने ये तमगे 18 जून को जिस अखबार से प्राप्त किये हैं, उसी अखबार के कार्यालय में जाकर उस तमगे का सम्मान प्राप्त करवा लें या अखबारों से ही अपने सम्मान की कीमत प्राप्त कर लें तो हम भी जान लें।

भला जिस अखबार ने 3300 विद्यार्थियों को थोक भाव से सम्मान दें, उसके संपादक को 3300 विद्यार्थियों का नाम भी ठीक से याद होगा। हमें तो नहीं लगता। वो तो अपने ही अखबारों में काम करनेवालों के गर्दन में उसकी पहचान के लिए औरतों के गले में मंगल सूत्र की तरह लटकनेवाले आईडी को जबर्दस्ती लटकाये रखता है, जबकि वो खुद उक्त मंगलसूत्र टाइप आईडी को नहीं लटकाता, क्योंकि वो जानता है कि इससे उसकी इज्जत का बट्टा लगता है।

इधर देखने में आया है कि उक्त अखबार के इस गंदी सोच को देखते हुए इस बार पहली बार कई विद्यालयों ने इसका प्रतिकार किया और अपने स्कूलों को इस प्रकार के लालची कार्यक्रमों से अपने बच्चों व अभिभावकों को दूर रखा। यही नहीं कई व्हाट्एएप ग्रुप में इसकी चर्चा भी रही। वो भी तब, जब प्रभात खबर के एक रिपोर्टर ने एक व्हाट्सएप ग्रुप में विद्यालयों के प्रबंधकों से इस कार्यक्रम में भाग लेने का निवेदन किया। फिर क्या था, इधर निवेदन हुआ और उधर व्हाट्सएप ग्रुप में ही उस कार्यक्रम का विरोध शुरु हो गया।

विवेकानन्द विद्या मंदिर से जुड़े व झारखण्ड उच्च न्यायालय के वरिष्ठ अधिवक्ता अभय कुमार मिश्रा तो विद्रोही24 को बताते हैं कि इस प्रकार का कार्यक्रम एक तरह से ड्रामा होता है, जिस ड्रामे का विद्यार्थियों के जीवन से कोई लेना-देना नहीं होता। भला एक अखबार के तमगे से विद्यार्थियों और स्कूल को क्या लेना-देना? क्या वो तमगा किसी विद्यार्थी के काम आ सकता है, नहीं न। तो फिर इस प्रकार के ड्रामे और तमगे लेने के लिए इतनी होड़ क्यों?

दरअसल ये अखबार वाले इस प्रकार के कार्यक्रम को आयोजित कर अपनी दुकान चलाते हैं। उस दुकान में कोचिंग चलानेवाले, प्राइवेट यूनिवर्सिटियां चलानेवाले कारोबारी जमकर हिस्सा लेते हैं तथा उस कार्यक्रम में शामिल होनेवाले विद्यार्थियों और अभिभावकों को माइन्डवॉश कर अपनी गिरफ्त में लेते हैं। यहीं नहीं इस प्रकार के कार्यक्रम में भाग लेकर ये कोचिंग चलानेवाले, निजी विश्वविद्यालय चलानेवाले अखबारों के मालिकों को मुंहमांगी रकम देकर, उनकी मुंह सदा के लिए बंद रखते हैं।

तभी तो सरकारी विद्यालयों-महाविद्यालयों, विश्वविद्यालयों के खिलाफ ये अखबारवाले जमकर लिखते हैं, पर निजी कोचिंग संचालकों- निजी विश्वविद्यालयों में फैली गंदगियों पर इनका कोई समाचार नहीं छपता। ये मुंह बंद रखते हैं। अभय कुमार मिश्रा तो ये भी कहते है कि ये स्कूली छात्रों के लिए ही नहीं, ये तो डाक्टरों के लिए भी यहीं धंधा अपनाते हैं। आजकल तो चिकित्सक सम्मान का भी पैटर्न चल चुका है। जिसमें प्राइवेट अस्पताल को चलानेवालों से विज्ञापन लेकर, उन्हें ही सम्मान देने का काम खूब फल-फूल रहा हैं। जो देश व समाज के लिए खतरा है।

अभय कुमार मिश्रा कहते है कि चूंकि अब इसका विरोध शुरु हो चुका हैं। कालांतराल में इस विरोध की संख्या आगे भी बढ़ेगी और धीरे-धीरे अखबारों का ये लालच दिखाकर पैसा कमानेवाला धंधा पर अंकुश लगेगा। लोग जगेंगे और कोचिंग संचालकों तथा निजी विश्वविद्यालयों की मनमानी से स्वयं को बचाने में सफल होंगे।

अभय कुमार मिश्रा तो ये भी कहते है कि इस प्रकार का आयोजन तो उन विद्यार्थियों के लिए अभिशाप का काम करता है जो दुर्भाग्यवश कम अंक लाये होते हैं, उनका तो ये निजी विश्वविद्यालय और कोचिंग संचालकवाले इस प्रकार के कार्यक्रम के बाद उनका इस प्रकार से दोहन करना शुरु कर देते हैं, जैसे लगता हो कि कम अंक लाकर उन्होंने बहुत बड़ा पाप कर दिया हो, जबकि ऐसा कुछ नहीं होता। इतिहास बताता है कि ज्यादातर वे ही लोग जिंदगी की परीक्षा में कामयाब हुए, जो सामान्य अंक लाकर भी अपने लक्ष्य को प्राप्त करने से नहीं डिगे और इस प्रकार के तमगे व झूठी सम्मान पाने से खुद को दूर रखा।