सरकार रघुवर की हो या हेमन्त की, चाहे महामारी से पत्रकारों की जान ही क्यों न चली जाये, पत्रकारों को अंततः लटकना ही हैं
शर्मनाक, एक ओर झारखण्ड के कई पत्रकारों व उनके परिवार के सदस्यों को कोरोना ने निगल लिया। कई पत्रकार व उनके परिवार के सदस्य ऐसे भी हैं, जो आज भी कोरोना पोजिटिव होकर, अपने घरों में कैद हैं, तथा भगवान का नाम लेकर अपना घर में इलाज करा रहे हैं। इसी बीच राज्य में पत्रकारों के साथ ऐसी भी घटनाएं घट रही हैं, जिसे देख व सोचकर सिर शर्म से झूक जा रहा हैं, पर आश्चर्य हैं कि सरकार में शामिल लोगों का ध्यान इस ओर नहीं जा रहा।
सूत्र तो बताते हैं कि जायेगा भी कैसे, इन्हीं के इशारों पर तो घटनाओं को अंजाम दिया जा रहा हैं, इसलिए पुलिस थाने से लेकर पुलिस महानिदेशक कार्यालय तक पत्रकारों के मामलों में चुप्पी साध लेते हैं। राजनीतिक पंडितों की मानें, तो इसका मूल कारण रांची से निकलनेवाले अखबारों, चैनल व क्लब के मुख्यालय में बैठे तथाकथित संपादकों/पत्रकारों द्वारा इन छोटे-छोटे पत्रकारों को भाव न देना तथा उन्हें दो कौड़ियों से ज्यादा का नहीं समझना, नहीं तो सरकार किसी की भी हो, पुलिस की इतनी औकात नहीं थी कि किसी पत्रकार को झूठे मुकदमें में फंसाकर उसके जीवन से खेल जाती, वह भी इस कोरोना काल में।
उदाहरण के तौर पर धनबाद के झरिया थाना के पुलिस पदाधिकारियों की हरकतों को देख लीजिये। वहां हो क्या रहा है? धनबाद के झरिया थाने के सब-इंस्पेक्टर ने पत्रकार अंकित झा से दुर्व्यवहार भी किया और उस पर गैर-जमानतीय धारा लगाकर केस भी दर्ज कर लिया, जबकि इसी थाने से जेल गये नागेश सिंह अभी भी निर्दोष होकर जेल में बंद है।
रांची के बुंडू में ही मजदूर के पेट पर लात मारकर जेसीबी से हो रहे डोभा निर्माण का समाचार संकलन करने गये दो पत्रकारों मिथुन चंद्र महतो, तरुण कुमार महतो की पिटाई कर दी गई। हजारीबाग के राजेश मिश्रा के साथ क्या हुआ, वो तो सबको पता है और रांची में कृष्ण बिहारी मिश्र के खिलाफ कोतवाली थाने में आनन-फानन में झूठा केस दर्ज कर दिया गया, सूत्र बताते है कि कृष्ण बिहारी मिश्र वाले मामले में सीएमओ के लोगों का हाथ है, जिस कारण कोतवाली थाने से लेकर पुलिस महानिदेशक कार्यालय तक इस मामले में चुप्पी साधे हुए है, जबकि इस संबंध में कृष्ण बिहारी मिश्र ने कई उच्चाधिकारियों से बातचीत की, पर चूंकि मामला सीएमओ के लोगों के इशारे पर दर्ज किया गया है, इसलिए कोई बोलने से भी हिचकता है, यानी सरकार रघुवर की हो या हेमन्त की, सत्य को फांसी पर लटकना ही है।
एक मई को पत्रकारों के उपर हो रहे अत्याचार व कोरोना के कारण मृत्यु को प्राप्त पत्रकारों के प्रति संवेदना प्रकट करने को लेकर काला दिवस मनायेगी AISMJWA
शायद यही सब कारण रहा है कि एआइएसएमजेडब्ल्यूए के प्रदेश अध्यक्ष ने कड़ी प्रतिक्रिया देते हए कहा कि झारखण्ड के बड़े मीडिया हाउस सरकार के हारमोनियम हो गये हैं। इन्हें करना है, तो पत्रकारिता करें, चाटुकारिता नहीं, बड़े मीडिया हाउसों को सरकारी एड की चिन्ता है, इसलिए वे सरकार की आवाज पर दुम हिलाते दिखेंगे यानी चाटुकारिता को प्राथमिकता देंगे, क्योंकि इनकी पॉलिसी ही ऐसी होती है।
AISMJWA बिहार, बंगाल व झारखण्ड के समन्वयक प्रीतम सिंह भाटिया व वरिष्ठ पत्रकार नवल सिंह का कहना है कि इस कोरोना काल में जहां समाज का हर वर्ग प्रभावित है, पत्रकारों को कोई देखनेवाला नहीं हैं, बल्कि उन्हें फंसानेवालों की संख्या अधिक हो गई है, तो ऐसे में जो भी लोग इस प्रकार के कुकर्म में शामिल हैं, उन्हें क्षमा नहीं किया जा सकता।
इन्होंने यह भी कहा कि “भाइयों मौत से किसकी यारी है, आज मेरी तो कल तुम्हारी बारी है”, इसलिए मिलकर इतिहास रचें और आनेवाले एक मई को पत्रकारों के हितों की रक्षा के लिए काला दिवस मनायें, तथा इस कोरोना काल में अपने दिवंगत साथी पत्रकारों व उनके परिवारों के सदस्यों के प्रति संवेदना दिखाएं।