जो EC अपनी ही कही बात नहीं मनवा सका, वो बेहतर ढंग से लोकसभा चुनाव क्या संपन्न करायेगा?
याद करिये, इस बार लोकसभा चुनाव को लेकर चुनाव आयोग ने कितनी बड़ी-बड़ी दलीलें दी थी। एक दलील तो ऐसी थी, जिसे सुनकर आम आदमी भी प्रसन्न हो उठा था कि चलो हमारे प्रत्याशी अब खुद इश्तिहार छपवायेंगे, वो भी एक नहीं, तीन-तीन बार, कि उनके अपराधिक रिकार्ड कितने हैं? यह काम प्रत्याशियों को नाम वापसी की तारीख बीत जाने तथा मतदान के दिन से पहले तीन बार अखबारों में छपवा कर करना था।
अब चुनाव आयोग ही बता दें कि देश में चार चरण के चुनाव संपन्न हो गये, क्या वो बता सकता है कि कितने प्रत्याशियों ने अपने अपराधिक रिकार्ड के विवरण अखबारों में छपवाएं, जब चुनाव आयोग अपनी ही बात प्रत्याशियों से नहीं मनवा सका, आम आदमी कैसे उस पर विश्वास करें कि भारत में जो वर्तमान में आम चुनाव हो रहे हैं, वो एक तरह से सही ढंग से संपन्न हो रहे हैं।
ऐसे ही मौकों पर बार-बार टीएन शेषण याद आते हैं। जिन्होंने बड़े-बड़े राजनीतिक दलों के धुरंधर प्रत्याशियों को अपने स्वयं के लोकहित निर्णयों से धूल चटवां दिये। पूर्व में तो ये राजनीतिक दलों के धुरंधर नेता टी एन शेषण को गालियों से नवाजने तक से बाज नहीं आये, फिर भी टी एन शेषण ने चुनाव कार्यों में सुधार के कार्य को नहीं छोड़ा, करते गये, यहीं कारण है कि देश में जब भी कभी चुनाव होते हैं, टी एन शेषण को कोई भूला नहीं पाता।
ये टी एन शेषण ही थे, जिन्होंने कहा था कि चुनाव में शहनाई बजाकर शांति नहीं लाई जा सकती। कभी उन्होंने ही बडे जोरदार ढंग से कहा था कि चुनाव के समय न तो उनका बॉस प्रधानमंत्री है और न ही राष्ट्रपति, उनका बॉस सिर्फ और सिर्फ उनकी जनता है। हमें याद है कि जब हमने होश संभाला,तब से लेकर टीएन शेषण के चुनाव आयुक्त बनने तक जो मतदान की स्थिति या प्रक्रिया देखी, उससे कभी संतुष्ट नहीं हुआ। जहां हमारा पैतृक निवास है, वहां हमेशा से ही दबंगों, स्थानीय गुंडों, अपराधियों का मतदान केन्द्रों पर कब्जा रहता और ये अपने-अपने नेताओं के लिए काम करते रहे।
एक समय ऐसा था कि चुनाव की घोषणा होती, और पूरे देश में ध्वनि प्रदूषण का ऐसा शोर होता कि जिन्हें हृदय की बीमारी होती, उनके लिए तो आफत का समय हो जाता, कई लोग तो इस चुनावी प्रचार के शोर में बहरे हो जाते, तो कई इस शोर से मुक्त होने के लिए कही बाहर जाने की प्लानिंग कर लेते, शादी-विवाह में तो कई के घरों में लाउडस्पीकर तक नहीं मिलता, क्योंकि सारे के सारे लाउडस्पीकरों पर विभिन्न दलों के नेताओं का कब्जा हो चुका होता, पर जैसे ही टीएन शेषण ने चुनाव आयुक्त का पद संभाला, ये सारे के सारे ध्वनि प्रदूषण, चुनाव में होनेवाले फिजूलखर्ची कहां गई, किसी को पता नहीं चला।
हमें याद है कि टी एन शेषण चुनाव कार्य में सुधार का काम किये जा रहे थे, जनता को कोई तकलीफ नहीं थी, पर सर्वाधिक तकलीफ उन नेताओं को हुई, जो क्रूर थे, निर्दयी थी, जिन्हें भारतीय संविधान की धज्जियां उड़ाने में, लोकतंत्र की हत्या करने में बहुत आनन्द आता था, हम गर्व से कह सकते हैं कि टी एन शेषण ने उस वक्त के जनता दल के पटना के प्रत्याशी इन्द्र कुमार गुजराल जो बाद में भारत के प्रधानमंत्री भी बने, उनका भी गर्वमर्दन किया था, जब वे पटना में लोकसभा का चुनाव लड़ रहे थे, जिनके लोकसभा क्षेत्र में बड़े पैमाने पर बूथ कैप्चरिंग हुई और इस शख्स ने कभी ये नहीं कहा कि उनके इलाके में बड़े पैमाने पर बूथ कैप्चरिंग हुई। ये वहीं समय था, जब पूर्णिया में पप्पू यादव का आतंक हुआ करता था, जिसके कारण पूर्णिया की लोकसभा का मतदान भी रद्द हुआ था, जो एक इतिहास बन गया, न भूतो न भविष्यति।
मतदान के लिए वोटर आइकार्ड का निर्माण का कार्य टी एन शेषण ने ही शुरु किया था, जिसका विरोध उस वक्त सर्वाधिक बिहार के नेता लालू प्रसाद यादव किया करते थे, एक बार तो उन्होंने दानापुर में जनसभा को संबोधित करते हुए कहा था कि जहां का लोग अपना कागज पत्तर खपरैल के बांस के फोफी में रखता है, बताओ तो वह वोटर आइकार्ड कहां से संभाल कर रखेगा, पर सच्चाई यह भी है कि ये वोटर आइकार्ड का ही कमाल है कि लोग अपना मतदान सही ढंग से कर रहे हैं, और इसकी उपयोगिता का पता सभी को मालूम है।
ये टी एन शेषण का ही कमाल था कि जो आइएएस/आइपीएस आफिसर जिलाधिकारी बनकर पार्टी के कार्यकर्ता बनकर काम किया करते थे, टी एन शेषण ने उन पर भी नकेल कसा, उधऱ से फोन घूमा और इधर जिलाधिकारी का तबादला। यानी चुनाव कार्यों में हो रही धांधलियों पर जितना लगाम टी एन शेषण ने लगाया, उसके बाद किसी ने ऐसा नहीं किया, और न ही लोग उन्हें जानते हैं। टी एन शेषण ने जो भी निर्णय लिये, उसे जमीन पर उतारा, पर आज के चुनाव आयोग के आयुक्त को देखिये, वे क्या कहते हैं, क्या करते हैं, उन्हें खुद ही नहीं पता, ठीक उसी प्रकार, जरा उनसे पूछिये कि चार चरणों के चुनाव संपन्न होने के बावजूद लोकसभा का चुनाव लड़ रहे अब तक कितने प्रत्याशियों ने तीन-तीन बार अखबारों में इश्तेहार छपवाएं, पता लग जायेगा।