शरद संगम के समापन समारोह को संबोधित करते हुए स्वामी आद्यानन्द ने कहा ईश्वर का सच्चा भक्त वही है, जिसे भगवान की दी गई पीड़ा का भी अनुभव न हो
कोलकाता स्थित दक्षिणेश्वर, रांची, इगतपुरी व नोएडा में आयोजित चार दिवसीय (7-10 दिसम्बर) शरद संगम के समापन समारोह को संबोधित करते हुए स्वामी स्वामी आद्यानन्द ने कहा कि ईश्वर का सच्चा भक्त वही है, जिसे भगवान के द्वारा दी गई पीड़ा का भी अनुभव न हो। स्वामी आद्यानन्द नोएडा से ऑनलाइन शरद संगम के समापन समारोह को संबोधित कर रहे थे।
स्वामी आद्यानन्द ने एक से एक इस दौरान योगदा से जुड़े संन्यासियों व आध्यात्मिक कथाओं को सुनाकर शरद संगम में भाग ले रहे योगदा भक्तों का मार्गदर्शन किया और बड़ी ही सुगमता से जीवन की समस्याओं से मुक्त होने का सरल पथ बता दिया। एक घंटे के उनके आख्यान में योगदा भक्त गोता लगाते रहे और स्वयं को परिमार्जित करते रहे।
स्वामी आद्यानन्द ने कहा कि बिना परीक्षाओं व समस्याओं के जीवन संभव ही नहीं। उन्होंने एक अफ्रीकन संत बखिता की कथा सुनाई। उन्होंने कहा कि बखिता एक अफ्रीकन संत थी। एक इटालियन जमीदार के यहां आया का काम करती थी, पर आध्यात्मिकता में वो उस उच्च शिखर पर पहुंच चुकी थी कि वैसा विरले लोग ही पहुंच पाते हैं। जिस इटालियन जमीदार के यहां वो आया का काम करती थी। उस जमीदार की एक बेटी भी थी।
जिसका बखिता बड़े ही सुंदर ढंग से देखभाल करती, लेकिन जमीदार उन पर तरह-तरह के अत्याचार करना नहीं भूलता। एक बार जब बखिता आध्यात्मिक संत के रुप में प्रतिष्ठित हो गई। तब उनके पास कुछ पत्रकार पहुंचे। पत्रकार ने उनसे पूछा कि अगर वे लोग उनके पास पुनः पहुंच जाये, जिन्होंने उन पर अत्याचार किया। तब बखिता उनके साथ कैसा व्यवहार करेंगी।
बखिता ने कहा कि अगर वे उनके पास आ गये तो वे सभी का हाथ चूम लेंगी, क्योंकि उनके ही इस व्यवहार के कारण वे यहां तक पहुंची है, अगर वे उनके साथ ऐसा सलूक नहीं करते तो फिर वो यहां तक कैसे पहुंचती। उन लोगों की उन (बखिता) पर बड़ा ही उपकार है। उस उपकार को वो कभी नहीं भूल सकती। ईश्वर तक पहुंचाने में उनका उनके जीवन मे बहुत बड़ा योगदान है।
स्वामी आद्यानन्द ने कहा कि संत बखिता का ये उदाहरण बताता है कि जीवन में समस्याओं का कितना बड़ा योगदान होता है। उन्होंने कहा कि समस्याएं आये तो आप हताश मत हो, क्योंकि यह आपके प्रगति में सहायक होती है। उन्होंने कहा कि ये समस्याएं हमारे कर्मफल के रुप में आती है। ये हमें मजबूत बनाने के लिए आती है। उन्होंने कहा कि अगर जीवन स्मूथ होगा तो संभव है कि हम कभी ईश्वर तक न पहुंच पायें। हमें अपनी समस्याओं पर अपने सुंदर विचारों व इच्छाशक्ति के द्वारा विजय प्राप्त करनी चाहिए।
उन्होंने कृष्ण-कुंती की कथा सुनाते हुए कहा कि जब महाभारत का युद्ध समाप्त हो गया। तब श्रीकृष्ण कुंती से विदा लेने की इच्छा से उनके पास पहुंचे। श्रीकृष्ण ने कहा कि आप जीवन भर कष्ट उठाती रही, अब आपके कष्ट का समाधान हो गया। अब मुझे यहां से जाने की अनुमति दीजिये। कुंती ने कहा कि जब समस्याएं थी तो तुम थे और जब समस्याएं नहीं, तो तुम नहीं रहोगे तो इससे अच्छा है कि तुम हमें समस्याएं ही दे दो, हमारी झोली में दुख और दुर्भाग्य ही भर दो, ताकि तुम सदैव मेरे पास रह सको। यह कथा भी बताती है कि ईश्वर तक मार्ग प्रशस्त करने का कार्य समस्याएं ही करती है। इसलिए समस्याओं से घबराना नहीं चाहिए, बल्कि उन समस्याओं का सामना करना चाहिए। प्रभु को स्मरण कर, उस पर विजय प्राप्त करने का मार्ग प्रशस्त हो, ऐसे कार्य करने चाहिए।
स्वामी आद्यानन्द ने लोगों को वे सूत्र बताएं कि जब समस्याएं आये तो हमें क्या करनी चाहिए। अगर उन सूत्रों पर अमल की जाये तो समस्याओं पर विजय पर प्राप्त किया जा सकता है, साथ ही ईश्वर को भी सहजता से प्राप्त किया जा सकता है। उन्होंने एक-एक सूत्रों को विस्तार से बताया। उन्होंने कहा कि प्रथम सूत्र हैः 1. प्रार्थना – अपने सारे सुख व दुख को ईश्वर/गुरु के प्रति समर्पण ही प्रार्थना है। प्रार्थना में एक बात याद रखें कि आप मन ही मन हमेशा भगवान को प्रणाम व स्मरण करते रहे। अच्छा रहेगा कि अगर कभी दुख आये तो उस दुख को भी ईश्वर से शेयर करें। विवेक से काम लें।
2. इच्छा शक्ति – उन्होंने कहा कि दया माता कहा करती थी कि दुख आयें तो उस पर चिन्ता व्यक्त करने से अच्छा है कि ईश्वर को हम याद करें। अगर हम इस दौरान अपनी इच्छाशक्ति को आध्यात्मिकता की ओर मोड़कर कुछ अच्छा निर्णय लेते हैं तो हम विजेता बनते हैं। 3. दृढ़ विश्वास – ईश्वर पर पूर्ण विश्वास रखें। कभी डरें नहीं। भगवान कृष्ण का दिया मूल मंत्र – अभयम् को याद करें। आप भगवान से प्रेम भी करें और उन पर विश्वास भी न करें तो ये दोनों एक साथ नहीं चलेगा। ईश्वर के संरक्षण, उसकी व्यापकता, उसकी दया, उसकी करुणा को कभी नहीं भूलें।
4. मनोवृत्ति – कभी भी अपने उपर गंदी मनोवृत्तियों को हावी नहीं होने दें। अगर हम गलत मनोवृत्तियों पर काबू पा लेते हैं तो सच्चाई है कि हम समस्याओं पर भी काबू पा जाते हैं। उन्होंने कहा कि ज्ञानमाता जी कहा करती थी कि जिसके जीवन में संघर्ष होता है, वो समस्याओं से संघर्ष करते हुए पूरे समाज में प्रेम व शांति फैला देता है।
5. समर्पण – जब आप चारों से हार-थक जाते हैं, तो समझ लीजिये कि ईश्वर के आगे समर्पण के सिवा कोई अब दूसरा चारा नहीं बचा। जब हम ईश्वर के प्रति खुद को समर्पित कर देते हैं तो फिर संघर्ष समाप्त हो जाता है। बातें ईश्वर की हो जाती हैं। 6. कृतज्ञता – ईश्वर ने जो भी कुछ आपको दिया है। उस दी गई वस्तुओं या संसाधनों के लिए आप हमेशा ईश्वर के प्रति कृतज्ञता ज्ञापित करें, क्योंकि बहुत सारी ऐसी वस्तुएं हैं जो सिर्फ आपको मिली और कइयों को वो भी प्राप्त नहीं हुई। इसलिए ईश्वर को कभी न भूलें।
7. समभाव – मन को हमेशा समभाव में रखें, क्योंकि जब भी आप एक्शन में रहेंगे। याद रखिये, उसका रिएक्शन भी होगा। इसलिए समभाव सबसे सुंदर मार्ग हैं। 8. आध्यात्मिक पथ – जीवन के इस संघर्ष में हमेशा समस्याओं से लड़ना सीखना चाहिए, जब आप समस्याओं से लड़ना सीख लेंगे तो फिर आप जिंदगी जीत लेंगे। लेकिन संघर्ष का रास्ता आध्यात्मिक पथ के सिवा दूसरा कुछ नहीं होना चाहिए।
9. पठन-पाठन – हमेशा गुरुजी के बताये पाठ को पढ़ते रहे, क्योंकि जितना आप उसका अध्ययन करेंगे। आपको नई चेतना, नई मार्ग मिलती रहेगी। कोई जरुरी नहीं कि आज पढ़ लिये तो फिर उसे दुबारा पढ़ना ही नहीं। यह इसलिए कहा जा रहा है कि हर अलग-अलग समय में गुरु जी के पाठ कुछ नया पथ आपको बताने के लिए तैयार रहते हैं।