जिसने नीतीश पर किया विश्वास, उसने खाया धोखा, नीतीश भारतीय राजनीति के सर्वाधिक अविश्वसनीय नेता
नाम जनता दल यू, पर सही में ये जनता दल यू हैं क्या? सच्चाई है कि यह भी राष्ट्रीय जनता दल व समाजवादी पार्टी के जैसा ही पार्टी है, ये अलग बात है कि उन पार्टियों में पारिवारिक फार्मूला ज्यादा टिकता है, यहां सिर्फ और सिर्फ नीतीश फार्मूला टिकता है, आखिर नीतीश फार्मूला है क्या? इसको समझने के लिए संस्कृत की एक सूक्ति ही काफी है, “एकोsहं, द्वितीयोनास्ति।” मतलब इस पार्टी में रहना है तो उस मंत्र की तरह नीतीश का नाम जपना होगा, जो कभी जगद्गुरु शंकराचार्य ने कहा था, आखिर जगद्गुरु शंकराचार्य ने क्या कहा था – “भज गोविन्दं, भज गोविन्दं, गोविन्दं भज मूढ़मते।”
आप इस मंत्र में जहां–जहां गोविन्द आया हैं, वहां–वहां नीतीश लगा दीजिये, सब समस्या ही समाप्त, उसके बाद तो ये जनाब लोकसभा, राज्यसभा ही नहीं बल्कि ऐसे–ऐसे जगह आपको प्रतिष्ठित कर-करा देंगे, जिनकी आप कल्पना ही नहीं कर सकते, पर ये दिखायेंगे क्या? कि इनको बिहार से सर्वाधिक प्यार हैं, बिहार इनके दिल में बसता है, पर सच्चाई क्या है? उसका उदाहरण देखिये, मैं जब भी बिहार जाता हूं, वहां के विभिन्न इलाकों में बड़ी ही आसानी से दारु पीकर लोगों को परम आनन्द की प्राप्ति करते देख लेता हूं, एक तो ऐसा आदमी है, जो हमारे मुहल्ले में, इनके दारुबंदी के बाद भी बिना पिये, एक दिन भी नहीं रह सका, पर इनका दावा ऐसा होता है कि जैसे लगता है कि भगीरथ के बाद, इनका ही जन्म हुआ, बीच में कोई हुआ ही नहीं।
जरा देखिये न, जब तक शिवानन्द तिवारी इनको भजे, राज्यसभा में रहे, और जैसे ही थोड़ा आइना दिखाया, सीन से गायब। हमेशा नीतीश के प्रति समर्पित रहनेवाले, प्रभात खबर के प्रधान संपादक को राज्यसभा ही नहीं, बल्कि राज्यसभा के उपसभापति तक पहुंचा दिया और जैसे ही शरद यादव ने जनता के प्रति दिये गये उस भरोसे को याद दिलाया कि ”मिट्टी में मिल जाऊंगा, पर दोबारा भाजपा का साथ नहीं लूंगा।” जरा देखिये, शरद यादव का क्या हाल किया?
2014 में जिस राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने नरेन्द्र मोदी को प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार बनाने का ऐलान किया, उस वक्त के भाजपा की ओर से पीएम पद के घोषित उम्मीदवार नरेन्द्र मोदी को नीचा दिखाने के मकसद से, नीतीश कुमार ने कैसे–कैसे पैतरे दिखाये, पैतरा तो इतना बड़ा दिखा दिया कि जिसके विरोध में वे बिहार के सत्ता संभाले, बाद में उसी के साथ गठबंधन कर फिर से सरकार बनाया और फिर कुछ वर्षों के बाद उसे फिर से ठेंगा दिखाकर, भाजपा के साथ मिलकर गठबंधन किया, और शासन संभाल लिया, और वे यह भूल गये कि उन्होंने जनता के बीच कुछ कहा था कि वे मिट्टी में मिल जायेगे, पर दोबारा भाजपा के साथ नहीं जायेंगे, पर आज सच्चाई क्या हैं, आप सभी के सामने हैं।
अब फिर 2019 में, भाजपा के साथ मिलकर लोकसभा का चुनाव लड़ा, और इन्हें पूरी उम्मीद थी कि इस बार त्रिशंकु लोकसभा होगी, इसलिए चुनाव परिणाम आने के पूर्व ही पैतरा दिखाया और पत्रकारों को संबोधित करते हुए कहा कि धारा 370, राम मंदिर और कॉमन सिविल कोड पर उनकी पार्टी की अलग विचारधारा हैं, जो भाजपा से मेल नहीं खाते। यह एक तरह से सीधा-सीधा मोदी-शाह को संदेश था कि उनकी नकेल बांधने के लिए नीतीश पटना से तैयार है, पर जैसे ही जनता ने पिछली बार की तरह, भाजपा को अकेले 303 थमा दी, उनके चेहरे का रंग ही उतर गया, अब बेचारे क्या करते, मन-मसोस कर रह गये और भरे मन से राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन की बैठक में भाग लिया, क्योंकि अब उनके पास कुछ करने को था ही नहीं।
अगर थोड़ा दिमाग पर जोर डाले, तो इनके लोग तो इस बार 17 सीट में ही इन्हें प्रधानमंत्री बनाने के लिए तैयार बैठे थे, तरह-तरह के बयान शुरु कर दिये गये थे, उनके चरण-पादुका उठानेवाले पत्रकारों का समूह भी नीतीश गायन को तैयार हो गया था, पर मोदी-शाह की जोड़ी ने इनके सब किये-कराये पर पानी फेर दिया और कह दिया कि बस एक लेना है तो लो, वह भी सांकेतिक मंत्री पद का शपथ लेना हैं तो लो, नहीं तो दिल्ली-पटना की फ्लाइट पकड़ो। बेचारे मुख्यमंत्री नीतीश कुमार क्या करते। दिल्ली से पटना आये। पत्रकारों की मंडली, एयरपोर्ट पर उनको पकड़ी और बेचारे भरे मन से कह दिया कि भाई अंगूर तो खट्टे हैं, जब पकेंगे तो खायेंगे, तब तक के लिए हमने अंगूर को पकने के लिए दिल्ली में छोड़ दिया हैं, और अपने लोगों को कह दिया है कि अंगूर पर ध्यान रखों, जब पकने लगे तो बता देना।