अपनी बात

ये टावर चौक देवघर के रहनेवाले बर्बरीक नंदन गुप्त कौन है, जिन्होंने झारखण्ड से लेकर भाया देश के सभी महानगरों से होते हुए नई दिल्ली के भाजपा के शीर्षस्थ नेताओं तक की नींद उड़ा दी है?

सचमुच इस बात में दम है। भाजपाइयों की नींद उड़ी हुई है। भाजपा के एक समर्पित कार्यकर्ता, जिसकी निष्ठा को कोई चुनौती नहीं दे सकता। उसने भाजपा के स्थापना दिवस के दिनों में भाजपा के अंदर आई तमाम चारित्रिक व नैतिक गिरावटों पर ऐसा आलेख लिखा है और उसकी करीब एक हजार प्रतियां पत्र के माध्यम से झारखण्ड ही नहीं, देश के सभी प्रमुख भाजपा नेताओं को भेज दी है।

इस पत्र का लिफाफा जैसे ही भाजपा के शीर्षस्थ नेता खोल रहे हैं। उनकी नींद उड़ जा रही है। हालांकि विद्रोही24 को पता है कि वे नेता कौन हैं? लेकिन हमें क्या पड़ी हैं कि हम इसका खुलासा करें? फिलहाल पत्र में उपलब्ध आलेख में बर्बरीक नंदन गुप्त ने क्या लिखा है। उस पर ध्यान दें। आलेख इस प्रकार है …

आओ भाजपा तुम पर मातम करें

पं. जवाहर लाल नेहरु की मौत के बाद मशहूर पटकथा लेखक डा. राही मासूम रजा ने एक कविता के रूप में उन्हें श्रद्धांजलि दी थी – आओ सूरज का मातम करें। आज भाजपा स्थापना दिवस पर 6 अप्रैल 1980 को जन्मी उस शानदार पार्टी को भारी मन से श्रद्धांजलि दे रहे हैं – आओ भाजपा तुम्हारा मातम करें। बात सुनने में अटपटी सी लगती है।

आज भारतीय जनता पार्टी का जन्मदिवस है, तो जन्मदिन पर शुभकामनाओं की जगह उसकी मातम। श्रद्धांजलि। ऐसा लिखने या कहनेवाला सिरफिरा ही कहलायेगा न? दुनिया की सबसे बड़ी पार्टी, जिसकी गुड्डी आसमान को छू रही है, जो गत दस सालों से सत्ता-सिंहासन की शोभा बढ़ा रही है, उसके मातम का क्या मतलब?

लेकिन यही पर बात यह सोचने की है कि आज जिसे हम देख रहे है, वह क्या वही पार्टी है, जिसे श्रद्धेय अटल बिहारी वाजपेयी और लालकृष्ण आडवाणी जैसी विभूतियों ने आज से 45 वर्ष पूर्व 6 अप्रैल 1980 को नई दिल्ली के फिरोजशाह कोटला मैदान में जन्म दिया था? अगर उस दिवस पर जन्में अटल-आडवाणी की इस संस्कारित भाजपा के आइने में मोदी-शाह के इस नंग-धड़ंग भाजपा के चाल-चरित्र और चेहरे को देखें तो शर्मसार हो सिर पीटे बिना नहीं रह सकते।

जिस भाजपा का जन्म सन् 1980 में हुआ था। उसका एक विशिष्ट चरित्र था, उसके कुछ आदर्श थे, उसमें कुछ मूल्यों की प्रतिष्ठा थी। उसके अंदर समाज एवं संगठन समर्पित ईमानदार कार्यकर्ताओं-नेताओं की कद्र थी। उस भाजपा के पास अटल, आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी, भैरो सिंह शेखावत, राजमाता सिंधिंया, शांता कुमार, जगन्नाथ राव जोशी, उत्तम राव पाटिल, राम नाइक जैसे जाज्ज्वयमान नक्षत्र थे।

जिसके प्रकाश में पार्टी के लोग समाज और देश सेवा का मार्ग ढूंढते थे। जिसके पास कुशाभाउ ठाकरे, सुंदर सिंह भंडारी और कैलाशपति मिश्र जैसे धवल-उज्जवल चरित्र संपन्न संगठन मंत्री थे। ये ऐसे संगठनकर्ता थे जो बाहर से नारियल के समान कठोर दिखते थे, अंदर से होते थे, उतने ही कोमल। कोई कार्यकर्ता उन तक अपनी बात, अपनी भावना और वेदना रख समाधान प्राप्त करता था।

उल्लेखनीय है कि उस दौर के बाद के संगठन मंत्रियों में संजय जोशी को छोड़कर बाकी का आकलन करिये तो चाहे वो रामलाल हो या वर्तमान के बीएल संतोष, इनका बौनापन नाम बड़े और दर्शन छोटे यही चरितार्थ करता है और प्रदेशों के संगठन मंत्रियों की ठसक को देखकर तो दांतो तले उंगली दबाने को विवश हो जायेंगे। उनमें भी झारखण्ड के कर्म कूटनेवाले, सर्वगुण संपन्न संगठन मंत्री कर्मवीर भाई साहेब के तो कहने ही क्या?

इस महान कर्मयोगी के क्रियाकलापों को देख हम तो स्तब्ध है। कहना नहीं होगा कि उस भाजपा के पास एक बेमिसाल नैतिक ताकत थी। जिसके चलते वह संसद और विधानमंडलों में कम तादाद होने के बावजूद अपने विरोधियों पर भारी पड़ती थी – उस वक्त भी, जब उसकी संख्या लोकसभा में मात्र दो ही होती थी।

इन पंक्तियों का लेखक इतिहास के पटल पर स्वर्णाक्षरों में दर्ज नवजात भाजपा के प्रथम पूर्ण अधिवेशन (तत्कालीन बंबई 29-31 दिसम्बर 1980) का प्रत्यक्ष गवाह है, जबकि इसके संस्थापक अटल बिहारी वाजपेयी ने बंबई के समुद्र तट पर एक लाख प्रतिनिधियों के बीच कहा था कि – हम देश की राजनीति को पं. दीन दयाल, गांधी और लोकनायक जयप्रकाश नारायण प्रणीत नैतिक मूल्यों के आधार पर खड़े करेंगे। भाजपा में कोई पद अलंकार की वस्तु नहीं, बल्कि दायित्व बोध का विषय होगा। जिनमें आत्मसम्मान नहीं, वे हमसे अलग रहें। पद, पैसा और प्रतिष्ठा के पीछे भागनेवालों के लिए यहां कोई जगह नहीं होगी।

अब सन् 1980 में जन्में अटलजी के मानसपुत्र उस भाजपा के उच्च संस्कारों के मापदंड पर आधुनिक भाजपा को तौलें तो पाते हैं कि पूर्व जनसंघ के एकात्म मानववाद की बुनियाद पर खड़ी तथा पंच निष्ठाओं से अनुप्राणित उस भाजपा की आत्मा को धकियाकर जहां-तहां सत्ता के गंदे नाले में मुंह मारनेवाले किसी विकराल प्रेत ने उसका जगह ले लिया है। सत्ता का एक भूत भाजपा के सिर पर सवार है कि इसे अपने स्थापित संस्कारों की कोई परवाह नहीं है।

तमाम तरह के असामाजिक तत्व-गुंडे, अपराधी, व्यभिचारी, अवसरवादी, पदलोलूप, भ्रष्टाचारी इस पार्टी के पदानुक्रम में मजबूती से जम गये हैं। पार्टी की अनुकम्पा से सांसद, विधायक और मंत्री पद ऐसे ही लोग लेकर चंपत हो रहे हैं। पार्टी-अध्यक्ष और संगठन मंत्री भाई साहबों ने पार्टी के अंदर जिस भ्रष्ट संस्कृति को स्थापित कर रहा है कि उसके मद्दे नजर श्री आडवाणी का इसके बारे में किया गया दावा पार्टी विथ डिफरेंस जो कि पहले एक हकीकत था, लेकिन आज मजाक का विषय बन गया है।

अटल जी ने सत्ता की राजनीति की जगह सिद्धांतों की राजनीति की राह दिखाई थी। आधुनिक भाजपा सिद्धांतों की गंदी राजनीति के पनाले में तैर रही है। उस सूअर या भैस की तरह जिसे उस बजबजाते पनाले में ही परमानन्द की प्राप्ति होती है। जन्म के साथ मिले इसके सारे स्थापित मूल्य सारे आदर्श कही पीछे छूट गये हैं।

परीक्षण के लिए अधिक दूर नहीं जाना-जरा इसी झारखण्ड में भाजपा की नटलीला देखिये, तो सारा माजरा समझ जायेंगे। भाजपा का निकृष्टतम चेहरा अगर देखना है तो झारखण्ड में पार्टी का चाल-ढाल पर नजर दौड़ाई जाये। एक संस्कृत भाषा के कवि ने व्यंग्य किया है – प्रकुर्वान् विनायको रचयामास वानरः अर्थात बनाने चले थे गणेश, लेकिन बना डाला बंदर। यही चरितार्थ है इस प्रदेश में। यहां दल के कार्यकर्ताओं के सामने कौन सा और कैसा आदर्श है?

अटलजी ने एक बार संसद में कहा था – पार्टी तोड़कर अगर सत्ता हासिल करना हो तो ऐसी सत्ता को चिमटे से छूना भी पसन्द नहीं करता। लेकिन झारखण्ड भाजपा का यह हाल है कि जिस महानुभाव ने एक समय पार्टी को तोड़ भाजपा का सरेआम मानमर्दन किया था, 14 साल बाद उसी को वापस लाकर दल का अध्यक्ष बना दिया जाता है। अटल जी एक देश एक जन का आदर्श रखा था।

लेकिन मुख्यमंत्री रहते झारखण्ड को डोमिसाइल की धधकती ज्वाला के हवाले कर देनेवाले घोर विघटनकारी सोचवाले बाबूलाल मरांडी से मोदी-शाहवाली इस भाजपा ने अटलजी की पढ़ाई एकता और पं. दीन दयाल उपाध्याय प्रतिपादित एकात्मता की उम्मीद कर रखी है। यह तो यही हुआ कि कर्कश कौए से कोई कोयल की मीठी कूक की उम्मीद करें। सो ज्योंही इस व्यक्ति को पार्टी की बागडोर हाथ लगी। उसने योजना पूर्वक भाजपा की हाईजैक कर अपने साथ आए भाजपातोड़क जेवीएम वाले भूत-बैतालों का दल को डाल-डाल पर डेरा जमा दिया।

एक समय पार्टी के झंडे फूंकनेवाले, झंडे से जूते पोछनेवाले, पार्टी के महापुरुषों के चित्रों की डंडे से कूटम्मस करनेवाले बाबूलाल की कृपा से भाजपा में हर स्तर पर काबिज हो गये। हजारीबाग, चतरा और धनबाद जैसी प्रतिष्ठित संसदीय सीटों को बाबूलाल की कृपा से जेवीएम पृष्ठभूमिवाले पार्टी तोड़क सूरमा ले उड़े और दल के निष्ठावान कार्यकर्ता हाथ मलते रह गये। आज हाल यह है कि बाबूलाल के निशाने पर वे ही तपे तपाए कार्यकर्ता है, जिन्होंने पार्टी को तोड़ते वक्त बाबूलाल और इनके गुर्गों से दो-दो हाथ कर पार्टी के परचम को मजबूती से थामे रखा था।

भाजपा के केन्द्रीय नेतृत्व और खासकर स्वनामधन्य मोटाभाई की अक्लमंदी पर तरस आती है कि जो बाबूलाल भाजपा को मिटाते-मिटाते खुद मिट्टी में मिल चुके थे, उसकी दल में वापसी कर और पूरी पार्टी को उसके हवाले करके मानो बोतल से जिन्न को बाहर कर दिया है। अब यह जिन्न भाजपा के सिद्धांतों एवं आदर्शों सहित एक-एककर भाजपा के समर्पित कार्यकर्ताओं को अपना भक्ष्य बना रहा है।

और उधर अपने अपकर्मों के लिए चर्चित झारखण्ड भाजपा संगठन मंत्री कर्मवीर भाई साहब। हे राम, इनसे भाजपा को बचाओ मेरे प्रभु। हम तो संगठन मंत्री को भाजपारुपी खेत की बाड़ समझते रहे हैं। यहां तो बाड़ ही खेत को चरने में लगा है। असल में स्व. हृदयनाथ सिंह और रंजन पटेल के बाद जो भी संगठन मंत्री झारखण्ड भाजपा के लिए भेजे गये, वे पार्टी की जगह अपना ही कुनबा खड़े कर निजी रसूख और स्वयं को हर प्रकार से बनाने की होड़ में लगे रहे। उनमें भी अपने नाम को शर्मसार करनेवाले इन कर्मवीर महोदय ने तो पार्टी को तिजारत की मंडी ही बना डाला।

पार्टी के पदों और लोकसभा टिकटों के वितरण में मानों इनकी लॉटरी खुल गई। ये भाई साहब अपनी सेवा में लगे शातिर छुटभैयों को मनमाने पद नवाजते हुए जी भरकर मनमाना किया। झारखण्ड भाजपा के मोटाभाई नाम से कुख्यात रांची के सरला बिरला पीठाधीश्वर को राज्यसभा में जाने की उसकी हसरत को पूर्ण कर अपनी मनमानी सिद्ध कर ली।

सबसे नेक कारनामा जिसके लिए कर्मवीर और बाबूलाल का नाम स्वर्णाक्षरों में दर्ज किया जायेगा, वह है धनबाद के शालीन सौम्य स्वभाव के धनी सांसद पशुपति नाथ सिंह के टिकट में कैंची चलाकर उस ढुल्लू पर ढल जाना जिसके खिलाफ अनेकों अपराधिक मामले चल रहे हैं। बेशर्मी देखिये, झारखण्ड में आधुनिक भाजपा के भाग्य विधाता बने बाबूलाल मरांडी की एक तरह ढुलू को पार्टी टिकट से नवाजे जाने पर कार्यकर्ता बुरी तरह शर्मसार है, धनबाद की जनता सांसद पद प्राप्त ढुलू के और ज्यादा खुंखार होकर सामने आने के भावी खतरे  भयाक्रांत है, लेकिन बाबूलाल उसे क्लीन चिट देकर उसका महिमामंडन कर रहे है। पतन की पराकाष्ठा है यह।

सचमुच आज के दौर में ढुलू और शशिभूषण मेहता जैसे चेहरे ही झारखण्ड भाजपा की खुबसूरती के पैमाने है। झरिया का चिपकू चापलूस कर्मवीर का कंठहार है, तो गिरिडीह का एक काकवर्ण होनहार बाबूलाल का और उधर संघ को निहित स्वार्थों में भंजानेवाले डालटनगंज के एक दुधारु गाय का बच्चा झारखण्ड प्रदेश प्रभारी लक्ष्मीकांत वाजपेयी का दुलारा है। जरा सोचिये – जब प्रदेश अध्यक्ष, संगठन मंत्री और प्रदेश प्रभारी के विश्वासपात्र ऐसे ही स्तरहीन लोग होंगे, तो समर्पित कार्यकर्ताओं के लिए क्या उम्मीद बचती है?

जब संगठन मंत्री कर्मवीर के आंख-कान प्रदीप वर्मा जैसे व्यापारी और आदित्य साहू जैसे घोर जातिवादी बने हुए हो तो पार्टी को रसातल में जाने से कौन रोक सकता है? सनद रहे कि झारखण्ड भाजपा को सत्यानाश की ओर धकेलनेवाले रघुवर दास की कृपा से राज्यसभा में पहुंचा आदित्य साहू वही हैं, जो रघुवर के ही प्रदेश अध्यक्ष रहते सन् 2009 के विधानसभा चुनाव में सिल्ली से भाजपा प्रत्याशी के तौर पर मात्र 2200 वोट पाकर बुरी तरह पिट गये थे, जो कि एक रिकार्ड है। दुर्भाग्य है कि झारखण्ड में भाजपा का सत्यानाश कर राष्ट्रीय मोटा भाई की अनुकम्पा से भुवनेश्वर के राजभवन में जमे उस शख्स की काली छाया से झारखण्ड आज भी नहीं उबरा है।

जब उपर्युक्त सभी बातों की गहराई में उतरते हैं, तो पाते हैं कि जो कुछ झारखण्ड भाजपा में चल रहा है, वहीं सब वर्तमान में आज राष्ट्रीय स्तर पर पूरी पार्टी के चाल-चरित्र और चेहरे पर जमी गहरी कालिमा है। आज पूरी पार्टी इसकी जड़ों को खोखले करनेवाले भयानक दीमकों से बुरी तरह संक्रमित हो चुकी है। दरअसल बाबूलाल, रघुवर और संगठन को संवारनें को भेजे गये भाई साहबों के काले कारनामों से एक ऐसी कराल कालरात्रि की साया झारखण्ड पर हावी है, जिसका अंत कब होगा, यह राम ही जाने।

रही बात पार्टी को नियंत्रित करनेवाले राष्ट्रीय स्वयंसेवकसंघ की तो इसकी दशा पुत्रमोह में अंधे बने धृतराष्ट्र की तरह है। इसके मठाधीश और कथित त्यागमूर्ति प्रचारकगण, सत्ता-प्रतिष्ठान में जमी भाजपा की मलाई चाभने में मग्न है। कि कर्मवीर, बाबूलाल और रघुवर जैसों के काले करतूतों से उन्हें क्या लेना-देना? डा. हेडगेवार और श्रीगुरुजी गोलवरकर जैसे तपःपूतों की जगह अब संघ के अन्यलोग प्रतिमान है।

यह मानने का कोई कारण नहीं कि आगामी लोकसभा चुनाव के लिए भाजपा-टिकटों के दल-बदलुओं, अपराधियों, व्यभिचारियों और धन-पशु भ्रष्टाचारियों को थमा दिये जाने के अपराध में संघ निर्दोष है, क्योंकि आज संघ कार्यालयों के नाम पर जो आलीशान प्रसाद खड़े किये जा रहे हैं। त्यागमूर्ति प्रचारकों और संघ प्रदत्त संगठन भाई साहबों के भोग-विलास के लिए जो लग्जरी वाहन और तमाम सुख सुविधाएं जुटाई जा रही हैं, वह तो इन्हीं भ्रष्टाचारी-धनपशुओं पर नजरें इनायत के बदले दक्षिणास्वरूप ही प्राप्त होती है न?

इसलिए अब भी किसी को भ्रम हो कि आज जो हमारी नजरों के सामने हैं, वह राष्ट्र साधना के अन्य साधकों पं. दीन दयाल उपाध्याय, अटल बिहारी वाजपेयी, लालकृष्ण आडवाणी, कुशाभाऊ ठाकरे, सुंदर सिंह भंडारी और कैलाशपति मिश्र के सपनों एवं संस्कारों की भाजपा है, तो यह मूर्खों के स्वर्ग में जीने के समान है। यकीन मानिये, वह भाजपा, अब इतिहास के पन्नों में दफन हो चुकी है। इसलिए हे देवतुल्य कार्यकर्ताओं, आओ। आज उस भाजपा का मातम करें।