अपनी बात

जब महिला पत्रकार अन्नी ने “अनारकली ऑफ आरा” झारखण्ड पुलिस को दिखाने की जिक्र की, तो कुछ को मिर्ची क्यों लगी?

भाई, मैं तो साफ कहूं कि जब एक वरिष्ठ महिला पत्रकार अन्नी अमृता ने झारखण्ड पुलिस और देवघर पुलिस से यह आग्रह किया कि ‘वे पुलिसकर्मियों को एक फिल्म “अनारकली ऑफ आरा” दिखा दें, तो समझ आयेगा कि औरत कोई हो, चाहे वह बार या आर्केस्ट्रा डांसर ही क्यों न हो, वह भी इन्सान है। जबर्दस्ती अगर उसके साथ कोई करता है या चाहता है तो वह गैरकानूनी है।’ तो इसमें गलत क्या है? कुछ लोगों को इतनी मिर्ची क्यों लग गई?

मेरा वश चले और जैसा कि देवघर में पिछले दिनों घटना घटी है, कि एक मां के सामने उसकी नाबालिग बेटी के साथ पांच युवकों ने गैंगरेप किया और इस घटना के बाद जब गश्ती दल के पास वो पीड़ित मां ने गुहार लगाई, फिर भी वो गश्ती दल उस पीड़ित मां की एक न सुनी तो ऐसे गश्ती दल के दिमाग में यह बात घुसे कि एक गीत गाकर या नृत्य कर किसी विशेष आयोजनों में सभी का मनोरंजन करनेवाली, उन्हें बधाई देनेवाली महिलाओं/लड़कियों का भी उतना ही सम्मान हैं, जितना एक सामान्य महिला और लड़कियों का तो इसमें गलत क्या है? हो सकता है कि इन गश्ती दल में जानेवाले पुलिसकर्मियों या थाने में बैठनेवाली पुलिस के दिमाग में जाये कि एक महिला की इज्जत कितनी मायने रखती हैं।

इस देश/राज्य में रहनेवाले लोगों की भी गजब सोच है। अगर कोई फिल्म अभिनेत्री/अभिनेता अजब-गजब की ड्रेस पहने, नग्न दिखे, अश्लीलता/फूहड़ता की सारी सीमाएं लांघ जाये, तो लोग उसमें अभिनय ढूंढते हैं, कलाकारी देखते हैं, पर एक सामान्य मां-बेटी छठियारी/शादी समारोहों में गीत-गाकर अपना पेट पालें तो लोग उसे हिकारत भरी नजरों से देखते हैं, नहीं तो पांच युवकों द्वारा अपनी आंखों के सामने अपनी बेटी की इज्जत लूटता हुआ देखने के बाद, भी जब एक मां गश्ती दल के पास जाती हैं।

उसके पास अपना दुखड़ा रोती हैं तो वो गश्ती दल क्यों नहीं सुनी और अगर सुन ली होती तो उसी वक्त वे सारे के सारे दुष्कर्मी इन गश्ती दल के द्वारा पकड़ लिये जाते, पर हुआ क्या? इतनी बड़ी घटना घट जाने के बाद भी, इन गश्ती दल के लोगों ने पीड़िता मां की एक नहीं सुनी। होना तो यह चाहिए कि इस गश्ती दल में उस वक्त ड्यूटी कर रहे सारे पुलिसकर्मियों को इसके लिए दोषी करार देते हुए, उन्हें दंडित करना चाहिए, पर अभी तक इस पर किसी ने सवाल तक नहीं उठाये?

शर्म करिये, उक्त पीड़िता सात किलोमीटर की दूरी तय कर पैदल मधुपुर थाने पहुंचती हैं, तब जाकर पुलिस हरकत में आती हैं, पर ये क्या अब तो बहुत देर हो चुका है। पीड़िता की मां की बात सुनें तो उन युवकों ने उसका पर्स में से पांच हजार रुपये, मोबाईल और आधार कार्ड तक छीन लिया। मां-बेटी दुमका बाजार के पास की रहनेवाली है, और वो सिरसा में एक छठियारी कार्यक्रम में भाग लेने के लिए गई थी। जहां से लौटने के बाद मां-बेटी को पांच युवक जंगल में ले गये और मां के सामने ही बेटी के साथ दुष्कर्म किया।

ऐसे में हम क्यों नहीं उस गश्ती दल में शामिल सारे के सारे पुलिसकर्मियों पर लानत बरसाएं, जिन्होंने पीड़िता के गुहार लगाने पर भी एक नहीं सुनी। इसका मतलब है कि ये सारे के सारे गुनाहगार हैं, जिन्होंने अपने कर्तव्य का पालन नहीं किया या तो इन्हें दंडित किया जाये या इन्हें सुधारने के लिए कुछ ऐसा किया जाय, जो इनके दिमाग में घुसे और इसके लिए तो सबसे बढ़िया रहेगा कि राज्य के मुख्यमंत्री हेमन्त सोरेन या पुलिस महानिदेशक नीरज सिन्हा अपने पुलिसकर्मियों को अविनाश दास द्वारा निर्देशित “अनारकली ऑफ आरा” फिल्म दिखायें।

अब इस देश/राज्य के कुछ लोगों की मानसिकता देखिये। एक वरिष्ठ महिला पत्रकार अन्नी अमृता ने इस मुद्दे को उठाया और यह मुद्दा उठाना उक्त महिला पत्रकार के लिए महंगा पड़ गया, देखिये अन्नी अमृता ने एक टिव्ट किया और कुछ महानुभाव कैसे-कैसे शब्दों के साथ उसके सम्मान से खेलने लगे और स्वयं को महान घोषित करने लगे। एक वरिष्ठ महिला पत्रकार को कैसे ट्रोल करने लगे।

सच्चाई यह है कि यह झारखण्ड महिलाओं/लड़कियों के लिए रहनेलायक नहीं रहा। संताल में तो लड़कियों/महिलाओं के साथ दुष्कर्म करना, उसे जिंदा जलाकर मार डालना, उन्हें मारकर उनके शव को किसी पेड़ पर लटका देना एक तरह से आम बात हो गया हैं, इसके लिए दोषी कौन है? इस पर हर किसी को ध्यान देना चाहिए।

पर आज इस प्रकार की घटनाओं के बावजूद राज्य की महिला संगठनों/महिला आयोग/राजनीतिक-सामाजिक संगठनों से जुड़ी महिलाएं कर क्या रही हैं? हाथ पर हाथ धरकर बैठी हैं और जो इस पर सवाल या कुछ बेहतर अपने अनुभवों को साझा कर रही हैं, ताकि इस प्रकार की घटनाएं कम हो या घटनाओं के बाद पुलिस हरकत में आये, प्रभावित पीड़ितों को मदद के लिए आगे आये, ऐसा प्रयास कर रही हैं तो लोग ऐसी महिलाओं को ट्रोल कर रहे हैं तो हमारे विचार से यह भी एक प्रकार का अपराध हैं, ऐसे लोगों को खुद अपने जीवन में झांकना चाहिए कि वे आखिर कर क्या रहे हैं?