नहीं पढ़ेंगे सड़क पर नमाज, यह आदत इस्लामी तालीम के खिलाफ, सड़क पर सब का हक
जब कोई मुसलमान कहे कि वो सड़क पर नमाज नहीं पढ़ेगा, यह आदत इस्लामी तालीम के खिलाफ है। सड़क पर सभी का हक हैं, तो एक सामान्य व्यक्ति आश्चर्य में पड़ जायेगा, क्योंकि वह तो ऐसा वर्षों से देखता आ रहा है, भला ये हृदय परिवर्तन कैसे हो गया? अगर कोई घोर सांप्रदायिक व्यक्तियों से इस संबंध में सवाल करें तो दोनों पक्षों के लोगों का जवाब अलग–अलग आ सकता है, पर एक अच्छे इन्सान से पूछा जाय कि उसे यह सोच कैसा लगता है, तो वह उस व्यक्ति या उस समाज का हाथ जरुर चूम लेगा, जिसने इतनी सुन्दर बात कही और समाज को एक नया रास्ता दिखा दिया।
इसमें कोई दो मत नहीं कि जब हम कोई नई परम्परा की शुरुआत करते हैं, तो कुछ वर्षों बाद वह परम्परा एक संस्कृति का रुप धारण कर लेती हैं और उससे एक पक्ष फायदा उठाने की कोशिश करता है, चाहे उसकी वजह से उसे भी हानि क्यों नहीं उठानी पड़ती हो। आम तौर पर सड़क चलने के लिए बना होता है, अगर किसी की इबादत से कोई परेशानी में पड़ जाये तो हमें नहीं लगता कि इबादत करनेवाले व्यक्ति से उसका भगवान बहुत ज्यादा प्रसन्न हो जायेगा, क्योंकि ईश्वर तो उसे ही पसन्द करता हैं, जो लोगों के दुख–दर्द को समझे।
रांची की सुप्रसिद्ध मस्जिद एकरा मस्जिद के बाहर अब सड़क पर लोग नमाज अदा नहीं करेंगे, इसकी शुरुआत 16 अगस्त से ही शुरु कर दी गई, जो पूरे झारखण्ड में चर्चा का विषय हैं, जो भी लोग इस बात को सुन रहे हैं, सभी इस्लाम धर्मावलम्बियों के इस सोच की प्रशंसा करने से नहीं चूक रहे। सूत्र बताते है कि एकरा मस्जिद के मौलाना उबैदुल्लाह कासमी के अनुसार, सड़क पर नमाज पढ़ने की आदत, इस्लामी तालीम के खिलाफ है, जिसको लेकर इसकी शुरुआत 16 अगस्त से कर दी गई।
मौलाना कासमी का कहना था कि सड़क पर सभी का हक है, और उसमें भी जहां एकरा मस्जिद है, वह मेन रोड पर स्थित है, इसलिए इस रोड की अहमियत कुछ ज्यादा ही है। यहां से एंबुलेंस, स्कूल बस तथा अन्य वाहनों का आना–जाना लगा रहता है, और नमाज की वजह से इन्हें दिक्कतों का सामना करना पड़ता है, ऐसे में लोग इस्लाम और मुसलमानों के बारे में कैसे बेहतर सोचेंगे, इसलिए अगली बार से इसे और बेहतर तरीके से लागू किया जायेगा।
मौलाना कासमी का कहना था कि वे जल्द ही ऐसी व्यवस्था अन्य मस्जिदों में हो, इसकी व्यवस्था करने के लिए वहां के मौलानाओं से बातचीत करेंगे। इस संबंध में बैठक भी बुलवायेंगे। उनका यह भी कहना था कि सड़क के किनारे पड़नेवाले मस्जिदों के इमामों से भी उनकी अपील रहेगी कि वे भी अपने सामने की सड़क के बाहर नमाज न होने दें।
सचमुच रांची के इस्लाम धर्मावलम्बियों ने सड़क पर नमाज न पढ़ने की अपनी इच्छाशक्ति को दिखाकर पूरे समाज का दिल जीत लिया हैं और सभी इनकी दिल से प्रशंसा कर रहे हैं, काश यहीं बात समाज के अन्य लोग भी सोचे तो निःसंदेह समाज में कोई बुराई ही नहीं रहेगी। समाज के प्रबुद्ध लोगों को चाहिए कि इस बेहतरीन सोच के लिए इसलाम धर्म से संबंधित ऐसी सोच वाले लोगों का नागरिक अभिनन्दन करें।