हेमन्त सरकार के आते ही बेकार व फालतू के विज्ञापनों पर लगी रोक, जनहित विज्ञापन बनी प्राथमिकता
कोई ज्यादा दिनों की बात नहीं, झारखण्ड में एक मुख्यमंत्री थे, नाम था – रघुवर दास। उनको छपास की बहुत ही भयंकर बीमारी लग गई थी। ऐसे नेताओं को छपास की बीमारी होती ही है, यह कोई नई बात भी नहीं, पर इनको ऐसी लगी कि पूछिये मत। ये अखबारों में, चैनलों में, पोर्टलों में, बिना अखबारों के भी अखबारों में स्वयं को देखना चाहते थे।
इसलिए इन्होंने आव देखा न ताव, लगे दोनो हाथों से झारखण्ड की जनता का पैसा अखबारों, चैनलों व पोर्टलों पर लूटाने। दूर के ढोल सुहावन और घर का जोगी जोगरा, बाहर का जोगी सिद्ध वाला फार्मूला इनके और इनके कनफूंकवों द्वारा अपनाया गया।
झारखण्ड के लोगों को बेवकूफ समझ दिल्ली से उन्होंने चेहरा चमकानेवाला मंगवाया। दिल्ली वालों ने देखा कि एक अच्छा मुल्ला हाथ लगा हैं, तो उसने भी जमकर मजे लिये और दोनों हाथ रसगुल्ले के नदिये में डाले रखा। जमकर हाथी उड़वाई, दो-दो पेज वह भी बिना किसी पीआर नंबर के सभी अखबारों में रघुवर जी का जय-जयकार करवाया, पर ये क्या?
अब तो रघुवर है ही नहीं, अब तो हेमन्त आ गये, पर हेमन्त की दो-दो पेज वाली विज्ञापन अखबारों में नहीं आ रही, न चैनल में ही दिख रही और न पोर्टलों में। जो भी विज्ञापन आ रहे हैं, वे सरल और सहज है, यानी जनता को जो चाहिए, वह मिल रहा हैं, और जनता भी अपने हेमन्त को उसी भाव में देख रही हैं, जिस भाव में उसने चुनाव के समय अपनाया।
शायद हेमन्त जान चुके है कि जनता अखबारों या चैनलों के विज्ञापनों पर नहीं जाती, वह देखती है कि उसका मुख्यमंत्री कैसा है? वह आम जनता की बातों पर ध्यान देता है या नहीं, अगर वह ध्यान दे रहा हैं, तो मुख्यमंत्री हमारा है, नहीं तो जनता किसी भी नेता को भाव नहीं देती, क्योंकि वह अपना सेवक चुनती है, राजा नहीं।
इधर जब से हेमन्त सोरेन ने राजकाज संभाला है, उन्होंने बड़े ही तार्किक ढंग से इस ओर ध्यान दिया है। शायद वे जानते है कि राज्य की जो आर्थिक स्थिति जो पिछली सरकार ने बनाई है, उस स्थिति में दो-दो पेज के विज्ञापन, वह भी बिना किसी प्रयोजन के, वह भी राज्य छोड़, दिल्ली व अन्य प्रदेशों तथा विदेशी चैनलों में देना राज्यहित में नहीं, ऐसे में इस प्रकार की सोच की सराहना करनी ही पड़ेगी।