उदीयमान भगवान भास्कर को प्रातःकालीन अर्घ्य अर्पण करने के साथ ही पूरे झारखण्ड में महापर्व छठ हर्ष व उल्लास के बीच संपन्न हो गया, छठव्रतियों ने भगवान भास्कर से अपने परिवार, समाज व देश की उन्नति की कामना की
उदीयमान भगवान भास्कर को प्रातःकालीन अर्घ्य अर्पण करने के साथ ही पूरे झारखण्ड में चारदिवसीय महापर्व छठ हर्ष व उल्लास के बीच संपन्न हो गया। छठव्रतियों व उनके परिवार के सभी सदस्यों ने भगवान भास्कर व छठि मइया से अपने परिवार, समाज व देश की उन्नति की कामना करते हुए अपने-अपने घाटों से अपनी घर की ओर लौटे। आज अहले सुबह ब्रह्म मुहुर्त में ही बड़ी संख्या में लोग उन घाटों पर फिर से पहुंचे, जहां उन्होंने कल अस्ताचलगामी भगवान भास्कर को अर्घ्य दिया था।
आज अहले सुबह छठ घाटों की शोभा देखते बन रही थी। ऐसा लग रहा था कि मानो स्वर्ग जमीन पर उतर आया हो। छठव्रतियों व उनके परिवारों द्वारा गाया जा रहा छठ गीत पूरे वातावरण को छठमय बना दे रहा था। नये-नये परिधानों से युक्त छठव्रतियों के परिवारों का समूह पूर्व दिशा की ओर भगवान भास्कर के आगमन की टकटकी लगाकर प्रतीक्षा कर रहा था।
कई स्थानों पर छठव्रतियों को सहयोग व सुविधा प्रदान करने के लिए छठ पूजा समितियों ने विशेष व्यवस्था की थी। कई जगह ऐसे स्टॉल देखे गये। जहां आम की डौंगी, आम के दतवन, धूप, फल, अगरबत्तियों के पैकेट, धूप, दूध आदि की निःशुल्क व्यवस्था की गई थी, ताकि जरुरतमंद छठव्रती या उनके परिवार उन वस्तुओं का इस्तेमल कर सकें। कई छठव्रतियों व उनका परिवार विभिन्न वाद्ययंत्रों के साथ घाटों पर पहुंचा था, जिन वाद्ययंत्रों से छठगीत की स्वर लहरियां वातावरण को झंकृत कर रही थी।
इधर जैसे ही भगवान भास्कर के आगमन की सूचना हुई। आकाश में लालिमा छाने लगी। भगवान भास्कर के आगमन की आहट छठव्रतियों के परिवारों को सुनाई दी। सभी के हृदय पुलकित हो उठे। उधर आकाश में भगवान भास्कर अपने लाल रंग के स्वरूप में विद्यमान थे और इधर जलाशयों में छठव्रतियों का समूह, उन्हें दोनों हाथों से प्रणाम करते हुए उनका अभिनन्दन कर रहा था। इसी बीच कई छठव्रतियों ने भगवान भास्कर को अर्घ्य देने की भी व्यवस्था कर ली।
घाटों में एक साथ सभी भगवान भास्कर को अर्घ्य देने लगे। सभी का चेहरा खिला हुआ नजर आ रहा था। उधर अर्घ्य हुआ। फिर घाटों पर बैठकर भगवान भास्कर और छठि मइया का पूजन प्रारंभ हुआ। हवनादि संपन्न हुए। फिर छठव्रतियों ने अपने साथ आये परिवार के प्रत्येक सदस्य को सिन्दूर तिलक लगाया और उनके बीच प्रसाद वितरित किये और फिर अपने-अपने घरों की ओर लौट चलें।