बिना एकान्त के हम ईश्वर की अनुभूतियों को नहीं महसूस कर सकते, इसलिए जीवन में प्रतिदिन एकान्त के क्षण को लाने की आवश्यकता हैः स्वामी गोकुलानन्द
एकान्त वो मूल्य है, जिसे हम स्वयं को प्रदान कर ईश्वर की अनुभूतियों को महसूस करते हैं। इसके द्वारा हम ईश्वर के निकट पहुंच जाते हैं। इसलिए एकान्त के महत्व को समझते हुए ईश्वर को पाने के लिए कुछ पल हमें एकान्त में बिताने का अभ्यास करना चाहिए। उक्त बातें आज योगदा सत्संग मठ के ध्यान केन्द्र में आयोजित रविवारीय सत्संग को संबोधित करते हुए स्वामी गोकुलानन्द ने योगदा भक्तों के बीच कही।
उन्होंने कहा कि दुनिया में कोई ऐसी चीज नहीं होती, जो मुफ्त प्राप्त हो जाये। सबका मूल्य निहित है। हमें उन मूल्यों को चुकाना ही होता है। कोई जरुरी नहीं कि हर चीजों को पाने के लिए हमें नकद का भुगतान करना पड़ें। कुछ चीजों को पाने के लिए नकद नहीं, बल्कि कुछ अन्य चीजों पर हमें ध्यान देना होता है। जो हमारे जीवन को एक नई मोड़ पर लाकर खड़ा कर देता है।
स्वामी गोकुलानन्द ने कहा कि प्राचीन काल में हमारे ऋषि-मुनि ईश्वर को पाने के लिए एकान्त की चाहत में घर का परित्याग कर जंगलों या हिमालय का रुख किया करते थे। लेकिन आजकल के युग में कोई जरुरी नहीं कि हम भी जंगलों या हिमालय का रुख कर लें। हो सकता है कि ऐसा करने पर हमें लेने के देने भी पड़ जाये। इसको लेकर स्वामी गोकुलानन्द ने एक दृष्टांत सुनाये, कि कैसे एक संन्यासी एकान्त की चाहत में हिमालय की ओर रुख किये और फिर से संन्यासी से धीरे-धीरे गृहस्थ बन गये।
उन्होंने कहा कि एकान्त के लिए हर कोई जंगल या हिमालय चले जाये, ये सब के वश की बात नहीं। लेकिन हम चाहे तो घर पर भी रहकर, समाज में भी रहकर एकान्त का लाभ ले सकते हैं, क्योंकि ईश्वर ने हमें वो हर चीजों को प्राप्त करने के लिए वो हर व्यवस्था हर जगह कर दी हैं, जिसकी हमें आवश्यकता है। उन्होंने कहा हमें नहीं भूलना चाहिए कि एकान्त हमें ईश्वरप्राप्ति के लिए रिचार्ज का काम करता है।
स्वामी गोकुलानन्द ने कहा कि ऐसे तो हर व्यक्ति को चार टाइम एकान्त के लिए निकालना चाहिए। पहले सुबह में, दूसरा दोपहर के भोजन के पूर्व, तीसरा रात्रि के भोजन के पूर्व और चौथा सोने के पूर्व। लेकिन आजकल भाग-दौड़ के इस जिंदगी में चार पल समय निकालना संभव नहीं। इसलिए लोग कहते है कि कम से कम दो पल जैसे एक सुबह और शाम तो ईश्वर को प्राप्त करने के लिए हमें एकान्त के लिए कुछ समय निकालना ही चाहिए।
उन्होंने कहा कि हमेशा याद रखें कि जब भी आप एकान्त का अभ्यास करेंगे, आप स्वयं शांति का अनुभव करेंगे। उन्होंने कहा कि आजकल जिंदगी को चला पाना बिलकुल टफ है, पर ये भी सही है कि जिंदगी को सरल बनाने के लिए आसान बनाने के लिए एकान्त का अभ्यास भी जरुरी है, क्योंकि जिंदगी में शांति और प्रेम इसी से प्राप्त होता है।
उन्होंने कहा कि हमेशा याद रखें कि जीवन में सकारात्मकता व नकारात्मकता दोनों विद्यमान है। हमेशा से ही ईश्वर और माया आपको प्रभावित करते हैं। दोनों अपनी ओर खींचने का प्रयास करते हैं। लेकिन यहां आपकी मर्जी चलती है कि आप किस ओर जाना चाहते हैं। अगर आपकी मर्जी है कि ईश्वर की ओर जाना है तो आप ईश्वर की ओर जायेंगे और अगर आप माया के प्रलोभन में आना चाहते हैं तो वहां भी आप जा सकते हैं, क्योंकि यहां तो आपकी मर्जी ही प्रधान है।
उन्होंने एक बात और अच्छी कही कि जो ज्यादा बोलते हैं, वे कभी भी भगवान के साथ नहीं होते। भगवान को वहीं पसन्द हैं, जो अंदर और बाहर दोनों से शांत होते हैं। उन्होंने सभी से कहा कि वे एकान्त की अवस्था में हमेशा खुद को शांतचित्त रखकर स्वयं को ध्यान में प्रविष्टकरा कर ज्यादा से ज्यादा ईश्वर में अपने आपको स्थापित करें, आप पायेंगे कि आप आनन्द में हैं। उन्होंने श्रीमद्भगवद्गीता के 18वें अध्याय के 51 से 53 श्लोक का उद्धरण देते हुए कहा कि गीता कहती है कि …
बुद्धया विशुद्धया युक्तो धृत्यात्मानं नियम्य च।
शब्दादीन्विषयांस्त्यक्तवा रागद्वेषौ व्युदस्य च।।
विविक्तसेवी लघ्वाशी यतवाक्कायमानसः।
ध्यानयोगपरो नित्यं वैराग्यं समुपाश्रितः।।
अहंकारं बलं दर्पं कामं क्रोधं परिग्रहम्।
विमुच्य निर्ममः शान्तो ब्रह्मभूयाय कल्पते।।
विशुद्ध बुद्धि से युक्त हलका, सात्विक और नियमित भोजन करनेवाला, शब्दादि विषयों का त्याग करके एकान्त और शुद्ध देश का सेवन करनेवाला, सात्विक धारणशक्ति के द्वारा अंतःकरण और इन्द्रियों का संयम करके मन, वाणी और शरीर को वश में कर लेनेवाला, राग-द्वेष को सर्वथा नष्ट करके भलीभांति दृढ़ वैराग्य का आश्रय लेनेवाला तथा अहंकार, बल, घमंड, काम, क्रोध और परिग्रह का त्याग करके निरन्तर ध्यानयोग के परायण रहनेवाला, ममतारहित और शांतियुक्त पुरुष सच्चिदानन्दघन ब्रह्म में अभिन्नभाव से स्थित होने का पात्र होता है।