नहीं मिल रहा BJP में महिलाओं को सम्मान, जिला समितियों में सम्मानजनक संख्या को लेकर नाक रगड़ रही महिलाएं
भारतीय जनता पार्टी के मठाधीशों द्वारा बनाये गये नियमानुसार, जिला समिति में, एक अध्यक्ष, 66 सदस्य (जिनमें 22 महिलाएं एवं छह अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति के सदस्य होने जरुरी हैं), छह उपाध्यक्ष, दो महामंत्री, छह मंत्री, एक कोषाध्यक्ष (इसमें भी पदाधिकारियों में पांच महिलाएं और दो एससी/एससी कोटे से होने अनिवार्य है) तथा जिला कार्यसमिति में 13 विशेष आमंत्रित सदस्यों को नियुक्त किया जा सकता है।
लेकिन बोकारो जिले में हो क्या रहा है? पदाधिकारियों में जहां पांच महिलाएं होनी चाहिए, वहां सिर्फ दो महिलाओं को ही स्थान दिया गया है, आखिर बची तीन महिलाओं को कब और कौन सा पद दिया जायेगा? इसका जवाब नीचे से लेकर उपर तक के अधिकारियों के पास नहीं है। कहने को तो ये भाजपा के नेता यह भी कह सकते है कि उनके पास एक पद उपाध्यक्ष और एक पद मंत्री का रिक्त है, जहां महिलाओं को रखा जायेगा, पर उसके बावजूद भी एक महिला बच जायेगी, उस बची हुई महिला को कौन सा पद दिया जायेगा, क्या इसका जवाब भाजपा के पास है? उत्तर होगा नहीं।
स्वयं कार्यसमिति के 66 सदस्यों में जहां 22 महिलाएं होनी चाहिए, वहां अब तक घोषित 62 सदस्यों में से मात्र सात महिलाओं को स्थान देकर इतिश्री कर दिया गया है। अब भाजपा के ही नेता बताये कि बोकारो जिले में जहां 62 में से सात महिलाओं को ही कार्यसमिति सदस्य में जगह मिली है, अगर मान लें कि बची चार सदस्यों में भी सारी महिलाओं को रख दी जायेगी, तब इनकी संख्या बढ़कर ग्यारह होने की संभावना है, ऐसे में जो एक तिहाई महिला को कार्यसमिति में सदस्य बनाने की बात है, वह बाते क्या पूरी हो रही है? आखिर बची ग्यारह महिलाओं को वो स्थान क्यों नहीं मिला?
विशेष आमंत्रित सदस्यों में 13 लोगों को जहां नियुक्त करने की बात कही गई है, वहां इसकी संख्या 40 कर दी गई है, और उसमें भी प्राथमिकता सांसदों-विधायकों, पूर्व सांसदों-पूर्व विधायकों, विभिन्न मोर्चाओं के पदाधिकारियों को दे दी गई है, इस विशेष आमंत्रित सदस्य में भी मात्र एक ही महिला को स्थान मिला है। यानी हाथी के दांत दिखाने की और, और खाने को और? राजनीतिक पंडितों का कहना है कि बोकारो जिला कार्यसमिति का गठन और उसका समाचारों में आना, इस बात को इंगित करता है कि भाजपा में महिलाओं का सम्मान न कल था और न आनेवाले समय में रहेगा।
राजनीतिक पंडित तो यह भी मानते है कि बोकारो तो एक उदाहरण है, यही हाल झारखण्ड में सभी जिलों की है, शायद ही कोई जिला होगा, जो भाजपा के मठाधीशों के द्वारा बनाये गये अनुरुपों के अनुसार होगा, क्योंकि यहां तो जिसकी लाठी उसकी भैस वाली कहावत चरितार्थ होती है। जिसको मन किया, अपने आदमी को अध्यक्ष बना दिया और वो अध्यक्ष जिसके कहने पर अध्यक्ष बना है, वह उसी के इशारे पर जिसे मन किया, उसे सदस्य बनाया और फिर जिला कमेटी बना दी, ऐसी जिला कमेटियां क्या गुल खिलाती है, वो किसी से छुपा नहीं है।
राजनीतिक पंडितों की मानें तो वे यह भी कहते है कि जिला कमेटी तो छोड़ दिजिये, यहां तो प्रदेश कार्यसमिति की भी घोषणा नहीं हुई, उस प्रदेश कार्यसमिति में महिलाओं को वो सम्मान मिल भी पायेगा या ऐसे ही चीजें वहां भी देखने को मिलेंगी, कहा नहीं जा सकता। ऐसे जो भाजपा कर रही है, या भाजपा के लोग जो कर रहे हैं, वो दृश्य सबके सामने हैं। इस पर ज्यादा दिमाग लगाने की जरुरत भी नहीं।