वाह महेश पोद्दार जी, चलनी दूसे सूप के जिन्हें बहत्तर छेद, थोड़ा टाटीसिलवे की जनता पर भी नजरे इनायत करिये
महेश पोद्दार जी पूर्व में भाजपा के प्रदेश कोषाध्यक्ष थे, अब भाजपा से राज्यसभा के सांसद है, जब से सांसद बने हैं, कुछ ज्यादा ही समाजसेवी बन गये है, भाई समाजसेवी बनना ही चाहिए, क्योंकि इसी से तो राजनीतिक माइलेज मिलता है, और बिना राजनीतिक माइलेज मिले, आप दुबारा सांसद बन भी नहीं सकते। अब एक सवाल है कि क्या आप किसी भी राजनीतिक पार्टी के प्रदेश कोषाध्यक्ष को जानते है?
उत्तर होगा – नहीं, क्योंकि ज्यादातर लोग किसी भी राजनीतिक दल के प्रदेश अध्यक्ष, प्रदेश महासचिव अथवा प्रदेश प्रवक्ता को ही जानते है, प्रदेश कोषाध्यक्ष से सामान्य आदमी को कोई लगाव नहीं होता, लेकिन जब आप प्रदेश कोषाध्यक्ष होते हुए, किसी जातिगत प्रभाव में आकर, किसी राजनीतिक व्यक्ति विशेष के प्रभाव में आकर कुछ पा जाते हैं तो फिर धीरे-धीरे आप में भी वो सारे गुण आ जाते हैं, जैसे कि आप अच्छे हैं और बाकी सब बुरा।
फिलहाल इन दिनों महेश पोद्दार का राज्य के नागरिक विकास मंत्री सीपी सिंह को लिखा पत्र खूब वायरल हो रहा है, इस पत्र में गुस्सा, धमकी और व्यापारिक प्रेम का अद्भुत समन्वय देखने को मिल रहा है, साथ ही पूरे पत्र को पढ़े तो एक तरह से राज्य के नगर विकास मंत्री सी पी सिंह को एक प्रकार से इशारों-इशारों में धमकी भी दे दी गई है, कि अगली बार के विधानसभा चुनाव में आपको टिकट नहीं मिल पायेगी, क्योंकि महेश पोद्दार का ये पत्र नगर विकास मंत्री को ऐसे ही नहीं लिख दिया गया, ये पत्र ही बताता है कि महेश पोद्दार के उपर राज्य के मुख्यमंत्री रघुवर दास का विशेष वरद हस्त प्राप्त है।
सूत्र बताते है कि राज्य के मुख्यमंत्री रघुवर दास की आंखों में दो मंत्री कुछ ज्यादा खटक रहे हैं, एक खाद्य आपूर्ति मंत्री सरयू राय और दूसरे नगर विकास मंत्री सी पी सिंह, और इन दोनों को ठिकाने लगाने के लिए राज्य के मुख्यमंत्री रघुवर दास बेचैन है, पर इन्हें मौका नहीं मिल रहा, पर राज्य के विभिन्न सांसदों को पता चल चुका है कि इन दोनों का राजनैतिक कैरियर दांव पर है, सीएम इन्हें पसन्द नहीं करते, इसलिए इन्होंने अब इन दोनों को ठिकाने लगाने के लिए अब खुला पत्र का सहारा लेना शुरु कर दिया है, क्योंकि इन्हें पता है कि अब ये कुछ भी कर लें, इनका अब कुछ चलनेवाला नहीं हैं, पार्टी में इनका सितारा गर्दिश में है।
नहीं तो राजनीतिक पंडित बताते है कि महेश पोद्दार की हिम्मत नहीं होती कि वे सी पी सिंह को खुला पत्र लिख देते, हालांकि इस खुले पत्र पर राज्य के नागरिक विकास मंत्री सी पी सिंह ने विद्रोही24.कॉम से कुछ भी कहने से इनकार कर दिया, उनका कहना था कि जब वो खुला पत्र उन्होंने देखा ही नहीं तो जवाब क्या देना? इधर अखबारों में जब से महेश पोद्दार का बयान आया है, कई लोगों ने महेश पोद्दार पर भी तीखी टिप्पणियां की है, लोगों का कहना है कि महेश पोद्दार को व्यापारियों की चिन्ता है, अपर बाजार और बकरी बाजार की चिन्ता है, और टाटीसिलवे की जनता की चिन्ता नहीं, जिनके फैक्ट्री के निकलनेवाले धूएं से हो रहे वायु प्रदूषण तथा ध्वनि प्रदूषण के लोग शिकार हो रहे हैं, क्या टाटीसिलवे की जनता, जनता नहीं, पर महेश पोद्दार को कौन आइना दिखाये।
टाटीसिलवे निवासी अर्चना मिश्रा लिखती है कि वाह रे सांसद महोदय चलनी दूसे सूप के जिन्हें बहत्तर छेद, सेनेटोरियम नाम से प्रख्यात स्थान की दुर्गति में आपका कितना योगदान है? आप की ही फैक्ट्री मिकी वायर इंडस्ट्री से वायु, ध्वनि और न जाने कैसे-कैसे प्रदुषण अनवरत हो रहे है, इस पर कुछ नही कहेंगे? आप यहां रहनेवाले लोगों को यदि इन्सान समझते तो कार्बन मोनोआक्साइड पिलाने का काम नहीं करते।
हालांकि महेश पोद्दार ने खुला पत्र के नाम जो ढड्ढर पत्र लिखा है, उसमें काम का सिर्फ एक ही लाइन है, जो महेश पोद्दार के मन में चल रही सारी योजनाओं का पोल खोलकर रख देता है वह है उनके पत्र का यह लाइन “ऐसी स्थिति में ट्रक तो वहां पार्क हो नहीं पायेंगे” यानी खुला पत्र में बात तो बकरी बाजार में पार्किंग, जल संरक्षण की हो रही हैं, पर उनकी चिन्ता सही में न तो पार्किंग के लिए हैं और न ही जल संरक्षण के लिए हैं।
उनकी तो चिन्ता है कि जब यहां मार्केंटिंग काम्पलेक्स बन जायेगा तो फिर वर्तमान में जो व्यापारियों का समूह हैं, उनके लिए जो ट्रक यहां आकर लगते हैं, वे कहां लगेंगे? ऐसी सोच है आज के सासंदों की। जबकि बकरी बाजार में जल संरक्षण के लिए एक बहुत बड़ा झील है, अगर सांसद महेश पोद्दार चाहे तो उसे ही समय-समय पर उड़ाही करवाते रहे, देखभाल करवाते रहे तो बकरी बाजार क्या? बहुत सारे इलाकों को पानी मिल जायेंगी, पर ये सब काम महेश पोद्दार नहीं करेंगे और न ही इस संबंध में वे मुख्यमंत्री रघुवर दास से अपील करेंगे, क्योंकि वे जानते है कि ऐसा करने से राजनीतिक माइलेज तथा अपना चेहरा चमकाने का मौका नहीं मिलेगा?
पर नगर विकास मंत्री को लिखने से यह होगा कि मुख्यमंत्री भी खुश, भाजपा के वे नेता भी खुश जो रांची से इस बार चुनाव लड़ने के लिए मुंह पिजाये हुए है। रही बात पार्किंग की, तो सेवा सदन वाले रोड में नगर – निगम के पार्क मौजूद है, जिसका उपयोग महेश पोद्दार अपने आनन्द के लिए कर सकते हैं, साथ ही एक बहुत बड़ा रांची झील से सटे इलाका है, जिसको सौंदर्यीकरण कर दिया जाये तो पार्क ही पार्क है, पर वो कहा जाता है न कि जो हम बोले तो गुणी और दूसरा करें तो दुर्गुणी, आज भी टाटीसिलवे के लोग महेश पोद्दार को खोज रहे हैं और उनकी चिमनियों से निकलनेवाले धुएं से स्वयं को मुक्त करने का प्रयास करने के लिए उपायुक्त को कई पत्र लिख चुके।
पर क्या मजाल कि कोई प्रशासनिक अधिकारी उनके इस अनुरोध पर ध्यान दे दें, भाई भाजपा के सांसद की फैक्ट्री है, कौन बोलेगा? और वह भी सीएम रघुवर दास के खासमखास का, तो लीजिये नगर विकास मंत्री सीपी सिंह को सांसद महेश पोद्दार ने जो खुला पत्र लिखा है, उसे पढ़िये और मजा लीजिये… और मजा लेने के बाद बकरी बाजार के व्यापारियों के पास आनेवाले ट्रकों को समस्याओं का सामना नहीं करना पड़े, इसके लिए ज्यादा दिमाग लगाये।
आदरणीय श्री चंद्रेश्वर बाबू,
सादर नमस्कार
कल सुबह अखबारों की सुर्ख़ियों ने मुझे डरा दिया और उसी डर के वशीभूत आपको यह खुला पत्र लिखने को विवश हुआ हूं। ज्ञात हुआ कि रांची नगर निगम अपर बाज़ार स्थित बकरी बाज़ार में मार्केट और पार्किंग प्लेस बनाने का निर्णय ले रहा है। विभिन्न सरकारी भवनों और अन्य संरचनाओं के कारण पहले ही कंक्रीट के जंगल में बदल चुके रांची शहर के लिए यह नयी खबर डराने वाली ही है।
आदरणीय प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी सदैव खुली जगहों को बचाने की बात करते हैं, बच्चों को खेलने की जगह देने की बात करते हैं। झारखण्ड में भी गांवों में स्टेडियम बन रहे हैं, फिर शहर के बच्चों का अपराध क्या है? आपको बताने की आवश्यकता नहीं कि रांची का अपर बाज़ार मिश्रित प्रकृति का एक घनी आबादी वाला इलाका है और इस इलाके में बकरी बाज़ार ही एकमात्र खुली जगह है। आसपास के करीब पांच किलोमीटर के दायरे में कोई दूसरा खेल मैदान या खुली जगह नहीं है।
यह भी आपके स्मरण में होगा कि बकरी बाज़ार को खुले मैदान के रुप में विकसित करने के आग्रह के साथ मैं आपको एवं नगर विकास विभाग के अधिकारियों को कई पत्र लिख चुका हूं। इन पत्रों में अन्य बातों के साथ इस बात का भी जिक्र है कि अग्रवाल सभा ने बकरी बाज़ार को खुले मैदान के रुप में विकसित करने का प्रस्ताव दिया है और मैं स्वयं भी अपनी सांसद निधि से इस कार्य के लिए वित्त पोषण को प्रस्तुत हूं। ये अलग बात है कि न तो इन पत्रों के आधार पर कोई सकारात्मक कार्रवाई हुई, न मुझे इस मामले में लिए गए किसी निर्णय से अवगत कराया गया।
अखबारों की खबरों के मुताबिक़ राजीव चड्ढा का नाम लेकर ये जताने की कोशिश हो रही है कि ये उनकी स्कीम है। महोदय, श्री चड्ढा तो एक आर्किटेक्ट हैं, उन्हें जो जिम्मेवारी नगर विकास विभाग या नगर निगम देगा वो करेंगे। जाहिर है, इस निर्णय की जिम्मेवारी भी नगर विकास विभाग या नगर निगम को लेनी चाहिए।
महोदय, हमारे प्रिय प्रधानमंत्री हमेशा सरकारी योजनाओं में जन भागीदारी और पारदर्शिता के पक्षधर हैं। इस शहर में नालों या सीवरेज ड्रेनेज के नाम पर जो कारोबार चल रहा है, वह आपसे छुपा हुआ नहीं है। 200 करोड़ का स्मार्ट नाला बनवाया जा रहा है लेकिन उसका औचित्य क्या है? सार्वजनिक रूप से नगर विकास विभाग का कोई अधिकारी बोलता ही नहीं है।
हरमू नदी के सौन्दर्यीकरण के नाम पर जनता के धन के अपव्यय पर आम लोगों, जन प्रतिनिधियों के साथ न्यायपालिका से जुड़े लोग तक प्रतिकूल टिप्पणी कर चुके हैं, लेकिन कोई इसकी जिम्मेवारी लेने को तैयार नहीं। आपके पास भी इन योजनाओं से जुड़ी कई शिकायतें आ रही हैं| अब यदि इन शिकायतों और मेरी बातों को भी लगातार नजरअंदाज किया जाएगा तो संभव है कि भविष्य में बहुत सारी ऐसी बातें होंगी जो शायद अप्रिय होंगी।
बकरी बाज़ार में मार्केट और पार्किंग बनाने की सोच किसकी है, ये मुझे नहीं मालूम, लेकिन इस निर्णय पर मेरा घोर विरोध है। आप कह सकते हैं कि यह नगर निगम का फैसला है और आपके मंत्रालय का इस फैसले में कोई दखल नहीं है। लेकिन, नगर निगम से जुड़े लोगों से जब भी मैंने बात की है, उनका कहना होता है कि सब कुछ नगर विकास विभाग तय करके हमें सौंपता है। उनके हिसाब से अटल वेंडर मार्केट भी नगर विकास विभाग ने ही बनवाया है|
आप ये भी कह सकते हैं कि बकरी बाज़ार मामले में शुरुआत उप महापौर श्री संजीव विजयवर्गीय जी ने की है। यदि यह सत्य है और आपकी कोई भूमिका नहीं, तो भी राज्य के नगर विकास मंत्री के रूप में उन्हें रोकने की जिम्मेवारी तो आप पर आती है। और कुछ नहीं तो कम से कम इस मामले में आपकी राय तो सार्वजनिक होनी ही चाहिए। लोगों को पता होना चाहिये कि इस मामले में आप क्या सोचते हैं।
खैर, ये मामला आपके और नगर निगम के बीच का है, लेकिन यदि रांची शहर की इसी तरह दुर्गति होती रही तो आज नहीं तो कल इसका विरोध होगा और इसकी जिम्मेवारी से आप नहीं बच पायेंगे। मैं उस संभावित अप्रिय स्थिति को टालना चाहता हूं। मैं समझ नहीं पाता कि यदि नगर विकास विभाग या नगर निगम हरमू में पार्क बना सकता है तो बकरी बाज़ार में पार्क या खुला मैदान बनाने से कौन रोकता है। हरमू के लोग तो 40 – 50 साल से हैं, उन्हें सरकारी आवासीय योजना के तहत बसाया गया है जबकि अपर बाज़ार में लोग सैकड़ों सालों से रह रहे हैं, लोगों की पुश्तैनी संपत्ति है यहां।
राज्य के मुख्य सचिव ने भी बाउंड्रीवाल के लिए कुछ मानक तय किये हैं। उन्होंने निर्देश दिया है कि तालाबों को, खुले मैदानों को या अन्य संरचनाओं को किस प्रकार घेरना है। मुख्य सचिव के निर्देश के बारे में जो कुछ मुझे पता है उसके मुताबिक़ दुकानें बनाकर बकरी बाज़ार को घेरने की योजना कहीं से भी उचित नहीं जान पड़ती। मैं समझ नहीं पा रहा कि यह विलक्षण आईडिया किनके दिमाग में कहां से आया।
महोदय, माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी जल संरक्षण के लिए चिंतित हैं। राज्य सरकार जल संरक्षण के लिए अभियान चला रही है। आप अवगत हैं कि बकरी बाज़ार में अपर बाज़ार का अधिकांश पानी बहकर आता है। यदि वहां कंक्रीट स्ट्रक्चर बनेगा तो पानी का प्रवाह रुक जाएगा। खुली जमीन सतही जल को अवशोषित करती है, यह प्रक्रिया भी रुक जायेगी। अपर बाज़ार की ऐसी एकमात्र जगह पर जहां जमीन पानी सोखती है, अगर कंक्रीट का स्ट्रक्चर खड़ा हो जाएगा तो यह शहर में भूमिगत जल के लिए एक नया संकट होगा। यह माननीय प्रधानमंत्री के संकल्प पर प्रहार की तरह होगा। क्या यह बेहतर नहीं होगा कि अपर बाजार क्षेत्र का पूरा पानी जमा करके बकरी बाज़ार में जल संरक्षण के लिए तालाब बना दिया जाय।
महोदय, राज्य के नगर विकास मंत्री के तौर पर आप इस तथ्य से अवगत होंगे कि हर शहर में आबादी के घनत्व और खुली जगह का एक निश्चित और न्यूनतम अनुपात होता है और प्रत्येक स्थिति में इस न्यूनतम अनुपात को कायम रखने की कोशिश की जाती है। रांची में अधिकांश खुली जगहों पर भवन बन गए हैं, खाली जगह है ही नहीं। अबतक जो अनुपात बिगड़ चुका, उसे नजरअंदाज भी करें तो अब बची हुई खुली जगहों को बचाना तो हम सबका दायित्व है, आपका दायित्व इस मामले में कुछ ज्यादा ही है|
रही बात पार्किंग स्पेस की, तो अंडरग्राउंड बनाईये, ओवरग्राउंड बनाईये वो एक अलग मुद्दा है। लेकिन बकरी बाज़ार में जितनी दुकानें बनवाने की योजना है, आनेवाले समय में सारे दुकानदार गाड़ी वाले होंगे और वही लोग पार्किंग की जगह भर देंगे। ऊपर में जो ऑफिस कॉम्प्लेक्स बनेगा, उसके कर्मचारी बाकी बची खुची जगह भर देंगे। ऐसी स्थिति में ट्रक तो वहां पार्क हो नहीं पायेंगे। बकरी बाज़ार की मदद अगर पार्किंग समस्या हल करने के लिए ही लेनी है तो बेहतर है कि इसका खुले मैदान के रुप में विकास कर सड़क के किनारे 20 फीट जगह छोड़ दीजिये, जिसपर लोग अपनी गाड़ी और मोटरसाइकिल खड़ी कर लें, उसके बाद लोहे का ग्रिल लगा दीजिये।
महोदय, मेरे हिसाब से नगर विकास विभाग और नगर निगम की प्राथमिकताएं कुछ और होनी चाहिए। मार्केटिंग कॉम्प्लेक्स बनाना निजी क्षेत्र का काम है और यह काम पूरी रफ़्तार से हो भी रहा है। नगर विकास विभाग या नगर निगम को इस प्रकल्प से बचना चाहिए। शहर बेतरतीब तरीके से फ़ैल रहा है, खेतों में कॉलोनियां बन रही हैं। इन अव्यवस्थित कॉलोनियों में सीवरेज, ड्रेनेज, सड़क, पेयजल आदि कोई भी नागरिक सुविधा व्यवस्थित और नियमित नहीं है।
पांच – दस साल बाद यही कॉलोनियां सिरदर्द बनेंगी। लोग नागरिक सुविधाएं मांगेंगे और उन्हें पहुंचाने में वही परेशानी आयेगी जो आज सीवरेज सिस्टम या यातायात व्यवस्था को ठीक करने में आ रही है। नगर विकास विभाग और नगर निगम की प्राथमिकता नयी बसावट वाले इलाकों की प्लानिंग और पुरानी बसावट वाले इलाकों तक नागरिक सुविधाएं पहुंचाने की कोशिश होनी चाहिए।
यदि नगर विकास विभाग वाकई जनता की चिंता करना चाहे तो चिंता इस बात की होनी चाहिए कि अबतक पूरे शहर को शुद्ध पेयजल मुहैया कराना क्यों नहीं संभव हो पाया है। यह भी कि शहर की बढ़ती आबादी के मुताबिक़ क्या हमारे पास पर्याप्त जलागार हैं और जो जलागार हैं उनमें क्या शहर के नागरिकों की जरुरत के मुताबिक़ जल भण्डार है। उत्साह प्रदर्शित करने के लिए सबसे उपयुक्त मामला यह है कि रांची शहर के लिए नए जल भण्डार तलाशकर उन्हें जलापूर्ति के लिए तैयार किया जाय, पुराने जल स्रोतों की क्षमता बढ़ाई जाय।
मैं मानता हूं कि बकरी बाज़ार के मामले में जनता को जन आकांक्षाओं के अनुरूप सही योजना के प्रस्ताव से अवगत कराने और उसपर अमल कराने के लिए आप सबसे उपयुक्त पात्र हैं। मैं और शायद इस शहर की अधिकांश जनता इस मामले पर आपकी बेबाक राय की प्रतीक्षा करेगी। मैं प्रस्तावित योजना के विरोध में हूं और आपसे अपेक्षा है कि जनभावना के अनुरूप आप इस मामले में त्वरित कार्रवाई करेंगे। सादर।
चलनी और सुप..
यथार्थ..
सटीक
सत्य..
सिर्फ छल और महत्वाकांक्षा।