वाह रे गिरिडीह CWC, अपराध कई लोगों ने किये, और FIR में सिर्फ एक का नाम, ये बुद्धि कहां से आती हैं
आखिर बाल कल्याण समिति गिरिडीह की ओर से एक स्कूल हिन्दी कार्मेल स्कूल अलकापुरी के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज करा ही दी गई। इस स्कूल पर आरोप है कि इस स्कूल ने 23 अक्टूबर 2019 को मुख्यमंत्री रघुवर दास के रोड शो में अपने स्कूल के छोटे-छोटे बच्चों के हाथ में भारतीय जनता पार्टी का चुनाव चिह्न कमल फूल, एवं माथे पर भाजपा का प्रतीक तथा टोपी पहनाकर रोड किनारे कतारबद्ध तरीके से खड़ा किया था, जो जूवेनाइल जस्टिस (केयर एंड प्रोटेक्शन ऑफ चिल्ड्रेन) एक्ट 2015 के तहत दंडनीय अपराध है।
प्राथमिकी बाल कल्याण समिति गिरिडीह के अध्यक्ष विमल कुमार यादव के द्वारा पचम्बा थाना में प्राथमिकी दर्ज कराया गया है, जिसकी प्राथमिकी संख्या 147/2019 है। विमल कुमार यादव ने अपने शिकायत पत्र में लिखा है कि स्कूली बच्चों के हाथों में राजनीतिक झंडे-पट्टे तथा उन्हें मुख्यमंत्री के रोड शो में शामिल करने को लेकर विभिन्न राजनीतिक दलों ने उस दौरान तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त की थी, जिस पर स्थानीय प्रशासन से जांच पड़ताल कराने के बाद संबंधित लोगों पर प्राथमिकी दर्ज करने का उपायुक्त द्वारा पत्र प्राप्त है।
अब सवाल उठता है कि मुख्यमंत्री रघुवर दास के रोड शो में केवल एक विद्यालय के स्कूली बच्चे तो थे नहीं, इसमें तो एक से अधिक स्कूलों यहां तक की महिला कॉलेज की छात्राएं भी रोड शो में शामिल थी, तो फिर बाल कल्याण समिति ने केवल एक ही स्कूल पर प्राथमिकी में निशाना क्यों साधा, बाकी स्कूलों पर बाल कल्याण समिति के अध्यक्ष ने कृपा क्यों लूटाई?
गिरिडीह के युवा समाजसेवी प्रभाकर इस मुद्दे को अपने सोशल साइट पर गंभीरता से उठाते हैं और कहते हैं कि सोचनेवाली बात है, कि आखिर सीडब्ल्यूसी के चेयरपर्सन विमल कुमार यादव आखिर किस दबाव में थे, जो उन्हें बच्चों की कतार में केवल कार्मेल स्कूल के ही बच्चे दिखे, जबकि उस कतार में हनी होली, गर्ल्स स्कूल समेत अन्य कई स्कूलों के बच्चे भी खड़े थे, वहीं महिला कॉलेज की बच्चियां खड़ी थी, कही कोई सत्ता का दबाव या पैरवी या फिर मलाई वाला मामला तो नहीं हैं, क्योंकि जुवेनाइल जस्टिस 2015 एक्ट की धारा 75 के साबित होने पर न्यूनतम पांच लाख दंड का प्रावधान है। सोचियेगा कि आखिर स्कूलों के नामों का जिक्र फर्द बयान से गायब क्यों?
शायद यहीं कारण रहा है कि गिरिडीह के कई लोगों को जिला प्रशासन पर उसी दिन संदेह हो गया था, जब उपायुक्त ने इस मामले का संज्ञान लेते हुए इसकी जांच कराने के बाद भाजपा के जिलाध्यक्ष से स्पष्टीकरण मांगी थी। इनलोगों का कहना था कि दोषियों को सजा मिलेगी, इसकी संभावना कम ही नजर आ रही हैं, यह केवल लोगों के लिए आइवॉश से ज्यादा कुछ नहीं, और कल जिस प्रकार से प्राथमिकी दर्ज कराई गई और उसमें केवल एक ही स्कूल का नाम दिया गया, भाजपाइयों को सीधे बचा लिया गया, उससे साफ पता लगता है कि इस प्रकरण पर न्याय होना संभव नहीं, क्योंकि सभी इस मामले को अपने-अपने ढंग से सुनियोजित ढंग से सदा के लिए दबाने का काम बड़ी ही ईमानदारी से करना शुरु कर दिया है।