औकात से ज्यादा मिलने पर हर नेता अक-बका जाता है, जैसे यशवंत सिन्हा
जिनकी कोई औकात नहीं, और उन्हें जब आप औकात से ज्यादा दे देंगे, तो वे आपको ही काटने को दौड़ेंगे। ये लोकोक्ति भाजपा नेता यशवंत सिन्हा पर फिट बैठती है। जरा यशवंत से पूछिये जब केन्द्र में पहली बार कांग्रेस के सहयोग से चंद्रशेखर प्रधानमंत्री बने और चार महीने के बाद ही जब देश में लोकसभा का चुनाव हुआ और उस समय जब वे पटना संसदीय सीट से चुनाव लड़ रहे थे, तो उनकी हालत क्या हुई थी? उस वक्त उनकी औकात क्या थी? जब उन्हें अपनी औकात का पता चला तब वे किस पार्टी का दामन थामा और वे इसके बाद कैसे अपनी राजनीतिक हैसियत बढ़ाते चले गये?
क्या बिना भाजपा के वे बिहार विधानसभा में प्रतिपक्ष के नेता बन सकते थे? क्या वे बिना भाजपा के हजारीबाग संसदीय सीट पर इतनी बार सांसद बन सकते थे, जितनी बार पार्टी ने उन्हें टिकट दिया? क्या वे प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के शासनकाल में वित्त मंत्रालय का पद संभाल सकते थे। आज वे जिस प्रकार का बयान प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के खिलाफ दे रहे हैं, उनकी तुलना मो. तुगलक से कर रहे हैं, तो वे भी कौन से कम हैं? यशवंत जी आप भी तो धृतराष्ट्र है, जैसे धृतराष्ट्र ने अपने बेटे के प्यार में अंधे होकर महाभारत का युद्ध तक स्वीकार कर लिया, ठीक वैसे ही आप अपने बेटे को हजारीबाग से दबाव दिलवाकर भाजपा का टिकट दिलवाया और जीतने के बाद उसे मंत्री भी बनवा दिया, क्या आपके बेटे में सुरखाब के पर लगे थे, क्या आपके बेटे जैसा योग्य मंत्री बननेलायक भाजपा के पास कोई नेता नहीं था।
कम से कम आप अपने दीदा का तो लाज रखे, पर आप लाज रखेंगे कैसे? आप तो पार्टी से कुछ और चाहते है, जो पार्टी अब आपको देना नहीं चाहती। ऐसे भी भाजपा को यशवंत सिन्हा एंड कंपनी से सदा के लिए विदा ले लेनी चाहिए, बेकार में वे ज्यादा दिमाग लगा रहे हैं, जैसे ही भाजपा से ये निकलेंगे, इनकी औकात पता चल जायेगा, क्योंकि इनकी राजनीतिक हैसियत बिहार और झारखण्ड में कितनी है? वो कौन नहीं जानता, पर पता नहीं क्यों भाजपा वाले इन्हें और इनके परिवार को ढोने में लगे हैं। कौन नहीं जानता कि आज यशवंत और उनके बेटे की भाजपा से जैसे ही विदाई होगी, इनकी हालत धोबी के कुत्ते से ज्यादा कुछ और हो ही नहीं सकती।
यशवंत सिन्हा को ज्यादा बरबोलापन से दूर रहना चाहिए और लालकृष्ण आडवाणी से सबक लेनी चाहिए कि इतने अपमान के बावजूद लालकृष्ण आडवाणी ने कभी भाजपा के खिलाफ आज तक नहीं बोला, हालांकि कई अन्य दलों के नेताओं ने उन्हें अपने पक्ष में करने की कोशिश की, पर लालकृष्ण आडवाणी ने अपनी मां समान भाजपा और संघ के खिलाफ एक शब्द भी नहीं बोला। ये अंतर है एक पार्टी समर्पित नेता और एक पार्टी में आये सत्तासुख पानेवाले नेता का।
Very Nice….I was told many times that you write only against to BJP , But today i saw your this post and i feel you are neutral reporter who always writes which he finds truth. Hats Off for u sir.