माया को प्रभावहीन बनाने की एकमात्र मारक औषधि योग है, हं-सः व ओम् तकनीक के रास्ते योग को अपनाकर ईश्वर को प्राप्त किया जा सकता है – स्मरणानन्द गिरि
हं-सः एवं ओम् तकनीक के द्वारा ही सकारात्मक व अच्छी सोच हमारे शरीर के अंदर छुपे मन और आत्मा को प्रभावित करती है, जो हमारे ध्यान को उच्चावस्था में ले जाने में सहायक सिद्ध होती है और बिना ध्यान के आप किसी भी अवस्था में नित्य नवीन आनन्द उस ईश्वर तक नहीं पहुंच सकते। इसलिए शार्टकट रास्ता न अपनाकर हं-सः एवं ओम तकनीक को कभी भी न भूलें, इसे बराबर करते रहे और अपने ध्यान को और गहराई में लेते जाये, ताकि आप सचमुच उस नित्य नवीन आनन्द प्रभु को प्राप्त करने में सफल हो सकें। ये बातें आज योगदा सत्संग मठ में आयोजित रविवारीय सत्संग में योगदा सत्संग मठ से जुड़े एक प्रख्यात संन्यासी स्वामी स्मरणानन्द गिरि ने योगदा भक्तों के बीच कहीं।
चूंकि आज सत्संग का विषय ही था – माया का प्रभाव और उस पर विजय कैसे प्राप्त करें? इसलिए उन्होंने आज इसी विषय की गहराइयों पर ज्यादा चर्चा की तथा योगदा भक्तों को माया के प्रभाव और उससे प्रभु को पाने में आनेवाली कठिनाइयों को विस्तार से बताया। आज कमाल की बात यह भी रही कि योगदा सत्संग मठ में स्थित ध्यान केन्द्र के बाहर भगवान इन्द्र अपनी लीलाएं रच रहे थे, वर्षा के माध्यम से सारे वातावरण को शीतल कर रहे थे, तो दूसरी ओर स्वामी स्मरणानन्द गिरि ध्यान केन्द्र के भीतर उपस्थित योगदा भक्तों को माया के कुप्रभावों से बचने के लिए ज्ञान की वर्षा कर रहे थे।
उन्होंने कहा कि माया के बारे में विभिन्न धर्मों में खुब चर्चाएं की गई कि कैसे यह ईश्वर तक पहुंचने में भक्तों के लिए बाधक बनने का काम करती है, फिर भी लोग इस माया के प्रभाव में आ ही जाते हैं। उन्होंने बताया कि माया के प्रभाव से बचना इतना आसान नहीं हैं, क्योंकि माया के पास अनेक अस्त्र हैं, जिसके प्रभाव से वो भक्तों को अपनी ओर खींच ही लेती हैं, पर यह भी सच्चाई है कि माया के होने के बावजूद जो सद्गुरु के प्रभाव में भक्त आ गये होते हैं, उन भक्तों पर माया का कोई प्रभाव नहीं पड़ता, क्योंकि गुरु माया से मुक्त करने के लिए अपने शिष्यों पर हमेशा ध्यान दिये होते हैं।
उन्होंने अपने व्याख्यान के प्रथम भाग की शुरुआत में ही एक सुंदर दृष्टांत देकर सभी का ध्यान आकृष्ट किया। उन्होंने एक कथा सुनाई कि एक मठ में एक महंत हुआ करते थे। वे बराबर ईश्वर की आराधना करते और समय-समय पर भगवान की आरती उतारा करते। इसी आरती उतारने के क्रम में मठ में जो एक बिल्ली रहती थी, वो उत्पात मचाती और आरती के क्रम में व्यवधान डालती। बिल्ली को ऐसा करते देख, महंत ने उसे आरती के क्रम में बिल्ली को एक खम्भे से बांधना शुरु किया। मतलब जब भी आरती होती, बिल्ली खम्भे में बांध दी जाती, ताकि आरती निर्विघ्नता से संपन्न हो सके। ये क्रम लगातार चलता रहा।
इसी बीच महंत दुनिया से चले गये। बाद में बिल्ली भी दुनिया छोड़ दी, पर इसी बीच ऐसी स्थिति हो गई कि आरती के क्रम में किसी न किसी बिल्ली को खम्भे में बांधने की उस मठ में एक परम्परा शुरु हो गई। मतलब, माया का क्या प्रभाव होता है, वो इस दृष्टांत से समझा जा सकता है, मतलब आरती से बिल्ली को कोई मतलब नहीं, पर बिल्ली खम्भे में बांधनी वहां जरुरी हो गई। इसी प्रकार उन्होंने कई दृष्टांत सुनाये, जो योगदा भक्तों को आंखे खोलने में सहायक बन रही थी।
स्मरणानन्द गिरि ने कहा कि आप कभी न भूलें कि माया, आपको ईश्वर से दूर करने में नाना प्रकार के षडयंत्र रचती है। इस षडयंत्र में नाना प्रकार के अस्त्रों का भी वो इस्तेमाल करती है। जिसके प्रभाव में साधारण मनुष्य ही नहीं, बल्कि कई संत-महात्मा भी आ जाते हैं। लेकिन सच्चाई यह भी है कि एक साधारण मनुष्य भी निरन्तर योगाभ्यास से वे माया को पराजित ही नहीं, बल्कि उसे अपने वश में कर, ईश्वर को प्राप्त करने में सरल व सहज भी महसूस करते हैं। उन्होंने योगदा भक्तों से साफ-साफ कहा कि आप जान लें कि निरन्तर योग करना, माया का एंटीडोज हैं। आप जितना योग के प्रति समर्पित होंगे, माया उतनी ही निष्प्रभावी होती जायेगी।
उन्होंने कहा कि सकारात्मक शक्तियां योग के प्रभाव में आकर माया के प्रभाव को नष्ट कर डालती है। हमारे गुरु अपने शिष्यों को माया के प्रभाव में आने से रोकने के लिए महती भूमिका निभाते हैं, बशर्तें कि शिष्य उनके बताये मार्गों पर चलने का निरन्तर अभ्यास करें, जैसे- हंस, ओम तकनीक व क्रिया योग को निरन्तर अपने जीवन पद्धति में शामिल करें।
स्वामी स्मरणानन्द गिरि ने कहा कि आखिर ईश्वर क्या है, ईश्वर दरअसल नित्य नवीन आनन्द है। उसे प्राप्त करने का एकमात्र रास्ता माया को प्रभावहीन करना और योगदा के द्वारा बताये मार्गों का अनुसरण करना है। माया हमेशा आपको ईश्वर से दूर करने का मार्ग बनाती है, जबकि सद्गुरु सर्वदा आपको ईश्वर तक ले जाने के लिए आपकी कठिनाईयों को सुगम बनाने में लगे रहते हैं।
उन्होंने कहा कि दुनिया में कई लोग हैं, जो माया के प्रभाव में आते रहते हैं। जैसे कई लोग हैं, जो कहते है कि अभी तो हमारे पास बहुत समय हैं। रिटायर्ड होंगे तो ये ध्यान का काम करेंगे। दरअसल ये माया ही तो हैं। उन्होंने परिवर्तन, स्लो-मोशन, डिवाइड, डिवाइड एंड कंक्वर, प्रलोभन, एकरसता शब्दों के मूल मायने और उसकी धार्मिक व्याख्या भी जोरदार ढंग से की। बीच-बीच में इन शब्दों के मायने को बताने के लिए उनके द्वारा दिये जा रहे कई दृष्टांत योगदा भक्तों को काफी रुचिकर लग रहे थे।