आप अपनी इच्छा की पूर्ति के लिए ईश्वर को अपनी आध्यात्मिकता का रिश्वत नहीं दे सकते, अगर आप सोचते हैं कि ऐसा करके आप अपनी बात मनवा लेंगे तो आप गलत हैं, ईश्वर ऐसी इच्छाओं की पूर्ति नहीं करताः हरिप्रियानन्द
आप अपनी इच्छा की पूर्ति के लिए ईश्वर को अपनी आध्यात्मिकता का रिश्वत नहीं दे सकते। अगर आप सोचते हैं कि ईश्वर को अपनी इच्छा की पूर्ति के लिए आध्यात्मिकता का हवाला देते हुए अपनी मनोकामना पूर्ण कर लेंगे तो आप पूर्णतः गलत हैं। ईश्वर ऐसी इच्छा की पूर्ति कभी नहीं करता। ये बातें आज ब्रह्मचारी हरिप्रियानन्द ने रांची के योगदा सत्संग आश्रम में आयोजित रविवारीय सत्संग को संबोधित करते हुए योगदा भक्तों के बीच कही।
उन्होंने कहा कि कर्म का सिद्धांत हमारे जीवन पर लागू होकर ही रहेगा। इससे कोई आज तक बच नहीं सका। जो हमने बोया हैं। उसे हमें ही काटना हैं। हमारे जीवन में आनेवाले सौभाग्य या दुर्भाग्य हमारे कर्मफल के ही परिणाम हैं। हमेशा याद रखें कि ईश्वर के पास अपने भक्तों को पुरस्कृत करने के लिए अनेक तरीके होते हैं।
हरिप्रियानन्द ने कहा कि आपने देखा होगा कि कोई व्यक्ति ईश्वर पर आस्था नहीं रखते हुए भी बहुत सुखीपूर्वक जीवन गुजार रहा होता है, जबकि दूसरी ओर ईश्वर पर आस्था व आध्यात्मिकता पूर्ण जीवन जीने के बावजूद कोई व्यक्ति जीवन भर दुखी ही रहता है। इसका मतलब यह है कि कर्मफल के सिद्धांत ने किसी को सुख से भर दिया तो किसी को दुख से परिपूर्ण कर दिया।
उन्होंने कर्मफल के सिद्धांत को बड़े ही सुंदर उदाहरण देकर लोगों को समझाया। उन्होंने योगदा सत्संग पाठमाला में उद्धृत एक कथा जो दो दोस्तों के बीच की हैं। उसे बड़े ही सुंदर ढंग से रखा, कि कैसे श्याम जिसको ईश्वर पर आस्था नहीं थी, फिर भी वो आनन्दमय जीवन जीया और निर्मल जिसका पूरा जीवन आध्यात्मिकता के बीच गुजरा, फिर भी वो उसका जीवन दुखमय रहा।
हरिप्रियानन्द ने कहा कि आपको अपने पूर्व जन्म में किये गये कृत्यों को हर हाल में भोगना है। कर्म क्या है? दरअसल कर्म क्रिया का एक नियम है। मानसिक या शारीरिक रुप से सचेत या अचेत अवस्था में हम जो भी करते हैं। वो ही कर्म है। जिसके परिणाम हमें इस जन्म या आनेवाले जन्म में भोगने पड़ते हैं। अगर हमने गलत किया तो उसके परिणाम निश्चित रूप से गलत होंगे और अच्छा किया तो उसके परिणाम निश्चित रुप से लाभ के रुप में प्राप्त होंगे।
उन्होंने कहा कि याद रखें कि पृथ्वी पर जब हम आये हैं तो हमें हर हाल में कर्म करना होगा। हम कर्म से मुक्त नहीं हो सकते। अगर कर्म से मुक्त होना चाहते हैं तो आपका कर्म निस्वार्थ भाव से होना चाहिए, ईश्वर को समर्पित करके होना चाहिए। उन्होंने कहा कि कर्म के फल तुरन्त अंकुरित नहीं होते, वो समय आने पर अंकुरित होते हैं।
उन्होंने कहा कि कर्म के चार प्रकार है। पहला पुरस्कार है। दूसरा प्रारब्ध हैं। जिसके दो भाग हैं। एक संस्कार और दूसरा संचित। तीसरा परारब्ध है – जो पूर्व जन्म के अनअंकुरित बीज के रूप में होते हैं। जो भयावह होता हैं और चौथा प्रहदार है। उन्होंने कहा कि कोई भी कर्म करें तो हमेशा सोच विचार कर करें। निस्वार्थ भाव से करें। क्रियायोग व ध्यान का आश्रय लेकर करें। अपने अवांछनीय कर्म इसी जीवन में दूर करने का प्रयास करें। आप सभी जन्मों के श्रेष्ठ कर्मों और ईश्वरीय सम्पर्क में आकर पूर्व जन्म में किये गये बुरे कर्मों के प्रतिफलों पर विजय पा सकते हैं। इसमें कोई किन्तु-परन्तु नहीं हैं।