“तुम मुझे केवल विज्ञापन की चाट चटाते रहो, मैं तुम्हें अपना महबूब मान लूंगा” – रांची के अखबार
“तुम मुझे केवल विज्ञापन की चाट चटाते रहो, मैं तुम्हें अपना महबूब मान लूंगा, तुम्हें सत्ता में लाने के लिए वो हर प्रयास करुंगा, जैसे एक पति की लंबी जीवन के लिए, एक पत्नी तीज व्रत रखती है।” “ओ मेरे महबूब, याद रखोगे न, केवल विज्ञापन की ही तो बात हैं, देखो न मैं तो तुम्हारे लिए अपना संपादकीय पेज तक को आपके कदमों में रख दिया,और क्या करुं, आपके लिए तो हमने जनता को भी कचरे में फेंकने का संकल्प कर लिया, कोई ऐसी न्यूज छापता ही नहीं, जो जनहित में हो, और बोलो न क्या करुं, तुम कहो तो मैं अपने पैरों में घूंघरु बांधकर, इस सावन–भादों के महीने में कजरी और ठुमरी भी गा दूं, बोलो कब गाऊं।”
ये हाल बना लिया है, रांची के अखबारों ने, सारी शर्म, लाज और हया बेच डाली है। वो भी दो टके के विज्ञापन के लिए। इसमें केवल छोटे अखबार ही नहीं, बल्कि स्वयं को देश का सर्वाधिक शक्तिशाली, राज्य का सर्वाधिक प्रसारित कहनेवाले अखबार, स्वयं को सर्वाधिक दीखा जानेवाले चैनल भी शामिल है, यहीं नहीं इनलोगों ने विज्ञापन प्राप्त करने के लिए सारे नियमों, कायदे–कानूनों को ताक पर रख दिया हैं। जो अखबार–चैनल जिनमें लोग अपनी समस्याओं की परछाई देखा करते थे, वे अखबार अब रघुवर गान में डूबे हैं।
जरा देखिये, एक अखबार है आजाद सिपाही, जरा देखिये इसने रघुवरभक्ति में स्वयं को कहा तक गिरा लिया, 21 अगस्त को इसके अखबार में हेंडिग है – “मोदी–शाह ने रघुवर को दिया 10 में 10 नंबर”। अब सवाल उठता है कि क्या मोदी और शाह भाजपाई मुख्यमंत्रियों की लिखित परीक्षा भी लेते हैं क्या? कि लिखित परीक्षा में रघुवर दास को 10 में 10 अंक मिल गया और जब मोदी–शाह परीक्षा ले रहे थे, तो इस अखबार के संपादक वहां मौजूद थे क्या? या उनके पास भाजपाई मुख्यमंत्री के प्रोग्रेस रिपोर्ट की प्रति पहुंच गई और जब ऐसा हैं तो उन्होंने अखबार में वो प्रोग्रेस रिपोर्ट क्यों नहीं छापा?
जनता भी देख लेती कि जिस राज्य के मुख्यमंत्री के शासनकाल में संतोषी की भूख से मौत हो जाती है, जहां किसान आत्महत्या कर लेते हैं, जहां भाजपा नेता का बेटा जमशेदपुर में नौकरी के जाने से आत्महत्या कर लेता है, जहां एक बेटी बलात्कार की शिकार हो जाती है, और फिर उसे जिंदा जला दिया जाता है, उस बेटी का बाप जब मुख्यमंत्री से न्याय मांगने जाता है तो मुख्यमंत्री उसके साथ कैसा अशोभनीय आचरण करता है, उस मुख्यमंत्री की प्रशंसा मोदी–शाह कैसे करते हैं?
इधर दैनिक भास्कर को देखिये, पिछले रविवार यानी 18 अगस्त को इसने संपादकीय पेज में फिर वहीं गलती दुहराई, जो पूर्व में दुहराई, उसने पूरा संपादकीय दो पेज रघुवरभक्ति समचार के रुप में पेश कर दिया, जो कि पूर्णतः पत्रकारीय एथिक्स के खिलाफ है, आश्चर्य है कि इस पेज में एक व्यवसायिक विज्ञापन भी दीख रहा है, जो बिना पीआर नंबर के छपा हुआ है, और आश्चर्य इस बात की कि पूरा दो पेज पेड न्यूज की तरह जनता की आंखों में धूल झोंकने के लिए छाप दिया गया है, आखिर इस दो पेज के विज्ञापन का भुगतान कौन, कहां और कैसे करेगा? क्या इसका जवाब दैनिक भास्कर या सूचना एवं जनसम्पर्क विभाग दे सकता है?
मैं तो झारखण्ड के सारे नागरिकों से कहूंगा कि आज ही संकल्प लें कि वे रांची से प्रकाशित उन सारे अखबारों–चैनलों–पोर्टलों का बहिष्कार करेंगे, जिन्होंने अपने जमीर को बेचकर, सिर्फ येन–केन–प्रकारेन विज्ञापन प्राप्त करने तथा उसके बदले रघुवर भक्ति में डूब जाने का संकल्प ले लिया हैं, नहीं तो इस झारखण्ड को बर्बाद होने से कोई नहीं रोक सकता, अखबारों–चैनलों का धर्म बनता है कि वे सत्य और जनहित में पत्रकारिता करें, पर जिस प्रकार से रांची में पत्रकारिता के नये फैशन ने जन्म लिया हैं, उससे झारखण्ड को बर्बाद होने से कोई रोक नहीं सकता।
हम विपक्षी दलों के नेताओं से भी अनुरोध करेंगे कि वे जनता के बीच जाकर, इस बात को फैलाएं कि अब जनहित के लिए पत्रकारिता नहीं हो रही, अब केवल झारखण्ड में प्राप्त खनिज संसाधनों पर अपना कब्जा जमाने तथा सरकार की आरती उतारने के लिए पत्रकारिता हो रही हैं, इस प्रकार की पत्रकारिता से झारखण्ड को बचाने के लिए सभी नागरिकों को एकजूट होना पड़ेगा, नहीं तो दो पैसों के लिए ये अखबार झारखण्ड की जनता के सपनों को नीलाम करने से भी नहीं चूकेंगे।