धर्म

आपके आचरण आपके द्वारा कहे गये शब्दों से कहीं ज्यादा प्रभावी हैं, आचरण के माध्यम से परिवार का आध्यात्मिकीकरण करें, निश्चय ही इससे आपका परिवार सुरक्षित होगा – स्वामी सदानन्द

अपने आचरण से अपने बच्चों में उत्सुकता जगायें ताकि वे अपने जीवन में आनेवाली समस्याओं पर विजय प्राप्त करने के लिए स्वयं को तैयार कर सकें, क्योंकि आपके आचरण आपके शब्दों से ज्यादा प्रभावी होते हैं। याद रखें, इस नॉलेज व इन्फॉरमेशन टेक्नोलॉजी के इस युग में आपके आचरण ही आपके बच्चों का बेहतर मार्गदर्शन कर सकते हैं। उपरोक्त बातें स्वामी सदानन्द गिरि ने योगदा सत्संग मठ में आयोजित रविवारीय सत्संग में योगदा भक्तों के बीच कही।

उन्होंने कहा कि जितना हो सकें आप अपने बच्चों को समय देना शुरु करें। जीवन के बारें में उनसे प्रश्न न करें, बल्कि उन्हें ही स्वयं बोलने का पूरा मौका दें। बच्चों पर तो अपनी इच्छा कभी थोपिये ही मत, बल्कि उनकी इच्छा को ही प्राथमिकता दीजिये, क्योंकि जो आप अपनी इच्छा थोपेंगे तो हो सकता हैं कि उसमें वो उतना बेहतर न करें, पर जो उनकी इच्छा होगी, उसमें सफलता मिलना सुनिश्चित होगा। उन्होंने यह भी कहा कि बच्चों को तर्क से ज्यादा अच्छा है कि अपनी आचरण से उन्हें बता दें कि उनके लिये क्या सही है और क्या गलत?

स्वामी सदानन्द गिरि ने यह भी कहा कि अगर आप अपनी भाव को ईमानदारीपूर्वक बच्चों के साथ रखने की कोशिश करेंगे तो आप बच्चों को अपनी ओर आकृष्ट करने में सक्षम होंगे, साथ ही उन्हें बेहतर स्थिति में लाने में भी सफल होंगे, क्योंकि आपके पास जितना जीवन का अनुभव होता है, उतना बच्चों के पास नहीं होता। स्वामी सदानन्द गिरि ने इस पर एक आधुनिक बच्चे और एक आध्यात्मिक रुप से परिपक्व मां की एक सुन्दर कहानी सुनाई।

जिसमें एक आध्यात्मिक रुप से सक्षम मां ने डार्विन के विकासवाद के सिद्धांत पर अडिग अपने बच्चे के समक्ष दशावतार के दसों रुप का सही-सही चित्रण कर अपने बच्चे में विकासवाद के सिद्धांत को सही तरीके से रख दिया, जिससे बच्चा भी समझ गया कि उसकी मां जो उसके सामने विकासवाद का सिद्धांत रखी, वो कहीं से भी गलत नहीं।

दरअसल, आज का विषय ही कुछ ऐसा था, जिस पर सदानन्द गिरि मुखर थे। विषय था – परिवार का आध्यात्मिकीकरण। इस विषय पर सदानन्द गिरि ने अनेक दृष्टांत योगदा भक्तों के सामने प्रस्तुत किये। उन्होंने पं. रविशंकर और उनकी बेटी अनुष्का से जुड़ी भी एक कहानी सुनाई। जिसमें सुप्रसिद्ध सितारवादक पं. रविशंकर अपनी बेटी अनुष्का को मंच पर ही परीक्षा लेना शुरु किया। एक से एक कठिन राग बजाना शुरु किया और अनुष्का को उसे रिपीट करने को कहा। लगातार तीन रागों को तो अनुष्का हु-ब-हू प्रस्तुत कर दी, पर चौथी राग में अनुष्का सही प्रकार से प्रस्तुत नहीं कर सकी। जिस पर पं. रविशंकर ने एक अच्छी हंसी से अनुष्का के आत्मविश्वास को और बढ़ाया।

इस कहानी के माध्यम से स्वामी सदानन्द गिरि ने योगदा भक्तों को बताया कि जीवन में सफलता और असफलता दोनों मिलते हैं। जो विवेकशील होते हैं, दोनों को समान रुप से लेते हैं। हमें अपने भविष्य की चुनौतियों पर विजय प्राप्त करने के लिए हमारे अंदर इस आत्मविश्वास का होना बहुत जरुरी हैं कि हमें एक न एक दिन सफलता अवश्य मिलेगी, बस निरन्तर प्रयास की जरुरत है।

स्वामी सदानन्द गिरि ने कहा कि जैसे जीवन रुपी नाटक में हमें रियाज करने का मौका नहीं मिलता, ठीक उसी प्रकार याद रखिये कि कोई जरुरी नहीं कि जो आप काम कर रहे हैं, उसमें सफलता मिल ही जाये। गुरु हमारे जीवन में चुनौती देकर हमें उन चुनौतियों में कभी सफल और कभी असफल भी कर सकते हैं। लेकिन आप जब दृढ़ निश्चयी होंगे तो फिर गुरु आपको सफलता जरुर दिलायेंगे।

उन्होंने कहा कि हमें जीवन में कभी हारना भी सीखना चाहिए। याद करिये, पहले के लोग खेला भी करते थे और उस खेल में वे कभी जीतते, तो कभी हारा भी करते थे। इस हार से उनका मनोबल घटता नहीं था, बल्कि वे फिर दुगने उत्साह से खेल में विजय प्राप्त करने का प्रयास करते थे। लेकिन आज के बच्चे खेलों से दूर हैं और उन खेलों का स्थान मोबाइल और इंटरनेट ने ले लिया, जिससे वे खेलों के मूल भाव को समझने से वंचित रह गये। उन्होंने कहा कि खेल हारना और जीतना दोनों सीखाता है और यह टीम भावना को भी मन में जागृत करता है।

पूर्व में जहां संयुक्त परिवार हुआ करता था। दादा-दादी, चाचा-चाची, दीदी-भैया, फुआ-फूफा, मौसा-मौसी के साथ बराबर रहने का मौका मिलता था तो हमारे अंदर वास्तविक प्रेम का संचार हो जाया करता था, पर आज के इस मोबाइल व इंटरनेट के युग में बच्चे उन प्यार से वंचित है। इसी प्रकार समाज में अनेक दोस्त हुआ करते थे, पर आज के बच्चों को वे दोस्त भी नहीं मिलते। स्कुल से आये, फिर पढ़ाई और समय मिला तो फिर मोबाइल और इंटरनेट। जिससे उनके अंदर आत्मविश्वास, आत्मबल व वास्तविक प्रेम का अभाव हो गया और यही कारण है कि आज के बच्चों पर सही मायनों में जब संकट आते हैं तो वे उस संकट का सामना करने के बजाय, अपने को प्रभावित कर लेते हैं।

स्वामी सदानन्द गिरि ने कहा कि बच्चों को बताइये असफलता और दुख सभी के जीवन में आते हैं, कोई इससे वंचित नहीं रहा है। जीवन में आप चलते जाइये। गुरु का ध्यान करते जाइये। कभी दिक्कत नहीं आयेगी। स्वामी सदानन्द गिरि ने कहा कि परमहंस योगानन्द जी कहा करते थे कि वे जो भी काम करते थे, वे ईश्वर के लिये कर रहे हैं, ऐसा सोच कर किया करते थे। यहीं कारण है कि जब उन्हें किसी काम में सफलता मिलती या असफलता, उसमें उन्हें कष्ट का बोध ही नहीं होता।

उन्होंने कहा कि संसार परिवर्तनशील है। अभिभावकों/माता-पिता को चाहिए कि अपने अंदर के अहं को खत्म करें, उन्हें ज्यादा बड़ी-बड़ी बातें नहीं समझाएं, अच्छा रहेगा कि अपने आचरण के माध्यम से ही उन्हें वो शिक्षा दे दें, क्योंकि जो आचरण द्वारा शिक्षा दी गई हैं, वो ज्यादा प्रभावशाली रही है। बच्चों को सामान्य लोगों के बारे में भी बतायें, क्योंकि बच्चे जानना चाहते हैं कि उनके जैसे सामान्य लोगों ने कैसे अपने जीवन को बेहतर स्थिति में लाकर स्वयं को प्रतिष्ठा दिलाई।

स्वामी सदानन्द गिरि ने सभी से कहा कि अपने परिवार को बेहतर स्थिति में लाने के लिए अच्छा रहेगा कि आप अपने परिवार का आध्यात्मिकीकरण करें। आध्यात्मिकीकरण का सबसे अच्छा तरीका है कि आप अपने गुरु के बताये मार्गों का अनुसरण करें। उनके पाठों को पढ़े। उनके पाठों में दिये गये मार्गदर्शन आपके आचरण व आपके चरित्र को बेहतर करने के लिये ही नहीं, बल्कि आपके परिवार और आपके बच्चों को बेहतर स्थिति में लाने के लिए काफी है। हमेशा ध्यान करें। हमेशा क्रिया योग का आश्रय लेते रहे। कभी भी इसे नहीं छोड़े। गुरुजी की बताई आधुनिक तकनीक को अपनायें, आप स्वयं पायेंगे कि आप और आपका परिवार बेहतर स्थिति में है, हर प्रकार से सुरक्षित है।