सूचना के अधिकार के बेहतर क्रियान्वयन को लेकर ग्राम स्वराज अभियान के बैनर तले धनबाद के कतरास में जूटे युवा
चूंकि आज के ही दिन देश में सूचना का अधिकार लागू हुआ था, अतः इसकी वर्तमान में प्रासंगिकता और इसको लेकर उभर रही चुनौतियों पर धनबाद के युवाओं ने ग्राम स्वराज अभियान के तहत एक सेमिनार सह प्रशिक्षण शिविर का आयोजन किया। जिसमें मुख्य रुप से ग्राम स्वराज अभियान के संस्थापक जगत महतो और अरविन्द सिन्हा की भूमिका प्रशंसनीय रही।
इस कार्यक्रम में मुख्य रुप से सुप्रसिद्ध समाजसेवी विजय झा, डा. चंद्रशेखर दत्ता, हजारीबाग के सुप्रसिद्ध आरटीआई एक्टिविस्ट राजेश मिश्रा, अधिवक्ता रामपुनीत सिंह, राकेश रंजन उर्फ चुन्ना यादव, गौतम मंडल, विनय सिंह आदि ने शामिल होकर इस कार्यक्रम की सार्थकता में चार चांद लगा दिये। करीब-करीब सारे वक्ताओं ने इसमें शामिल होकर इस बात पर एकमत थे, कि सूचना के अधिकार आने से देश में आमूल-चूल परिवर्तन हुए हैं।
विजय झा ने अपने संबोधन में कहा कि उन्हें इस बात की खुशी है कि कतरास में इस प्रकार के कार्यक्रम आयोजित किये गये। कतरास का राजस्थानी धर्मशाला इस बात का गवाह बना कि लोग सूचना के अधिकार के तहत अपनी समस्याओं को हल करने में रुचि लेने को आतुर हैं। उन्होंने कहा कि देश में कई कानून बनें, पर कानून का तभी फायदा समाज को मिलता हैं, जब समाज में रहनेवाले लोग उस कानून की बारीकियों को समझते हुए, उनसे लाभ लेने की कोशिश करें।
विजय झा ने सूचना के अधिकार को लेकर लड़ रहे कई आरटीआई एक्टिविस्टों की सराहना की, साथ ही उन्होंने समाज को झकझोरते हुए कहा कि सूचना का अधिकार का ही कमाल है कि देश में कितने बच्चों को दूध तक नहीं मिल रहा हैं, ऐसे मामले सामने आ रहे हैं। उन्होंने कहा कि अभी तो सूचना के अधिकार के ही कानून बने हैं, अभी ऐसे और कानूनों की आवश्यकता होगी, जिसे समाज का भला होना है।
राजेश मिश्रा ने आरटीआई को लेकर आ रही समस्याओं और उसमें आरटीआई एक्टिविस्ट को जो परेशानी उठानी पड़ रही हैं, उन समस्याओं को बड़े ही तार्किक ढंग से रखा। उन्होंने इस बात को खुलकर कहा कि राज्य में सूचना के अधिकार कार्यक्रम को पंगु बनाकर रख दिया गया हैं, क्योंकि सूचना के अधिकार को जिन्हें जमीन पर उतारना हैं, उनकी बहाली ही नहीं की जा रही।
डा. चंद्रशेखर दत्ता ने इसके एतिहासिक पक्ष को विस्तार से रखा और एक-एक प्वाइंट देकर बताया कि कैसे सूचना का अधिकार आज देश में एक नई क्रांति को लेकर आया हैं, हालांकि चंद्रशेखर दत्ता ने भी इस बात को स्वीकार किया कि इसे जमीन पर उतारने में कई लोगों को परेशानियां भी उठानी पड़ रही हैं। इस पर उनका कहना था कि क्या इन परेशानियों के आगे हम अपना हथियार डाल दें, या संघर्ष का रास्ता अपनायें।