परमहंस योगानन्द को क्रियायोग की प्राचीन वैज्ञानिक प्रविधि के प्रचार-प्रसार के लिए प्रशिक्षित करनेवाले एकमात्र गुरु युक्तेश्वर गिरि
“हिमालय के अमर संत महावतार बाबाजी के आदेश पर, स्वामी श्रीयुक्तेश्वर गिरि ने प्रसिद्ध आध्यात्मिक गौरव ग्रंथ, योगी कथामृत के लेखक श्री श्री परमहंस योगानन्द को क्रियायोग की प्राचीन वैज्ञानिक ध्यान प्रविधि के प्रचार प्रसार हेतु प्रशिक्षित किया,” स्वामी श्रीयुक्तेश्वर के महासमाधि दिवस के अवसर पर योगदा सत्संग सोसाइटी ऑफ इंडिया (वाईएसएस) द्वारा आयोजित एक ऑनलाइन भक्तिपूर्ण कार्यक्रम के दौरान एक वरिष्ठ संन्यासी स्वामी श्रद्धानन्द गिरी ने बताया।
स्वामीजी ने कहा “यह श्रीयुक्तेश्वर गिरि के कई आध्यात्मिक योगदानों में से एक है, जिनके द्वारा हमारी धरा और सम्पूर्ण मानव जाति अत्यंत धन्य हुई और परिवर्तित भी।” 10 मई, 1855 को पश्चिम बंगाल के श्रीरामपुर में जन्मे स्वामी श्रीयुक्तेश्वरजी लाहिड़ी महाशय के शिष्य बने और उन्होंने क्रियायोग साधना के माध्यम से ईश्वर-साक्षात्कार को प्राप्त किया। वे स्वामी श्रीयुक्तेश्वर ही थे जिनकी ओर दैवीय रूप से निर्देशित परमहंस योगानन्द के कदम बढ़े, जब वे एक युवक के रूप में एक गुरु की गहन खोज कर रहे थे।
श्रीयुक्तेश्वर के आध्यात्मिक प्रशिक्षण और कठोर अनुशासन में, मुकुंद नाम का एक बालक तीव्रतापूर्वक स्वामी योगानन्द, एक ईश्वर-प्राप्त आत्मा के रूप में विकसित हुआ, जो पश्चिम में प्राचीन क्रियायोग शिक्षाओं के प्रसार के अपने विश्वव्यापी मिशन को शुरू करने के लिए तत्पर था। योगानन्दजी, जिन्हें बाद में स्वामी श्रीयुक्तेश्वर द्वारा ‘परमहंस’ की उपाधि से सम्मानित किया गया, ने अपने गुरु को श्रद्धापूर्वक ‛ज्ञानावतार’ कहकर पुकारा, जो ज्ञान का एक अवतार थे, जिनका आध्यात्मिक स्तर सामान्य लोगों की समझ से परे था।
स्वामी श्रीयुक्तेश्वर ने 9 मार्च, 1936 को पावन नगरी पुरी में महासमाधि (एक महान योगी का परमतत्व के साथ एकात्मकता की स्थिति में शरीर से अंतिम सचेतन प्रस्थान) में प्रवेश किया। वाईएसएस ने बुधवार, 9 मार्च को स्मरणोत्सव का आयोजन ऑनलाइन कार्यक्रमों के माध्यम से किया, जिसमें 3,500 से अधिक लोग अपने घरों से सम्मिलित हुए।
वरिष्ठ वाईएसएस संन्यासियों, स्वामी श्रद्धानन्द गिरि और स्वामी अच्युतानन्द गिरि ने इस अवसर पर वाईएसएस ऑनलाइन ध्यान केंद्र पर क्रमशः अंग्रेज़ी और हिंदी में विशेष सत्संग और ध्यान सत्रों का संचालन किया। इन सत्रों में प्रार्थना, प्रेरणादायक पठन, चान्टिंग और मौन ध्यान की अवधि शामिल थे, और इसका समापन परमहंस योगानन्दजी द्वारा सिखाई गई आरोग्यकारी प्रविधियों के अभ्यास के साथ हुआ।
अपने प्रेरक वचन में, स्वामी अच्युतानन्दजी ने योगी कथामृत से योगानन्दजी के अपने गुरु श्रीयुक्तेश्वरजी के विषय में दिये विवरण को साझा किया, जो उनके आध्यात्मिक और व्यावहारिक ज्ञान के बीच उत्तम संतुलन पर प्रकाश डालता है, एक ऐसा गुण जिसने इस महान अवतार के व्यक्तित्व को परिभाषित किया: “पाँव ज़मीन पर दृढ़, मस्तक स्वर्ग की शांति में स्थिर। व्यावहारिक स्वभाव के लोग उन्हें अच्छे लगते थे। ‛साधुता का अर्थ भोंदूपन नहीं है! ईश्वरानुभूतियाँ किसी को अक्षम नहीं बनाती!’ वे कहते थे, ‛चरित्र बल की सक्रिय अभिव्यक्ति तीक्ष्णतम बुद्धि को विकसित करती है।’”
स्वामी अच्युतानन्दजी ने श्रोताओं से आग्रह किया कि इस पवित्र दिन को मनाने का सही तरीका इस महान ज्ञानवतार के जीवन से यह व्यावहारिक सबक लेना था: “अपने जीवन में संतुलन के उस आदर्श को प्राप्त करने के लिए प्रयास करने का दृढ़ संकल्प करना — आध्यात्मिक और भौतिक ज़िम्मेदारियों के बीच, ध्यान और क्रियाकलापों के बीच, जीवन के सभी पहलुओं के बीच संतुलन।”
परमहंस योगानन्द की क्रियायोग शिक्षाएं योगदा सत्संग सोसाइटी ऑफ इण्डिया/सेल्फ़-रियलाइज़ेशन फ़ेलोशिप (वाईएसएस/एसआरएफ़) की मुद्रित पाठमालाओं के माध्यम से उपलब्ध हैं। योगानन्दजी द्वारा स्थापित दोनों संस्थाओं के भारत और विश्वभर में 800 से भी अधिक आश्रम, केंद्र और मण्डलियाँ शामिल हैं। अधिक जानकारी के लिए: yssi.org से सम्पर्क करें।